Saturday, September 8, 2018

क्या विकास वाक़ई लापता हो गया है।

क्या विकास वाक़ई लापता हो गया है। विकास की गुमशुदगी के सवालों के बीच सरकार के दावों में कोई कमी नहीं आ रही है। क्या वाक़ई अर्थव्यवस्था तेज़ी सै बढ़ रही है? जी हां, जीडीपी तो बढ़ रही है। इसमें कोई शक नहीं है। सरकार के दावे भी सही हैं भले ही आंकड़ों की बाज़गरी कहिए। बस सरकार अपने दावे में जो एक बात छिपा रही है वो है विकास का केंद्रीयकरण। यानि विकास तो हो रहा है। इंडस्ट्रीयल ऑउटपुट भी बढ़ा है और निर्यात भी। लेकिन पिछले चार साल में इसका लाभ नहीं दिखा है तो इसकी वजह अर्थव्यवस्था का केंद्रीयकरण ही है।
इसे आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं। दरअसल इस चार साल के दौरान सरकार का सारा ज़ोर असंगठित क्षेत्र को ख़त्म कर उसके बदले में संगठित क्षेत्र को बढ़ावा देने पर रहा है। नोटबंदी, उलझी हुई जीएसटी और ई-वे बिल लागू करने के पीछे मंशा भी यही थी। भारत में व्यापार और कारोबार का अमेरिकी या इज़रायली माॅडल लागू करना सरकार की प्राथमिकता रही है। विश्व बैंक और आईएमएफ भी इसको प्रोत्साहित करता है। इसके तहत बहुत सारे छोटे निर्माताओं और कारोबारियों को बाज़ार से हटाकर कुछ बड़े समूहों के लिए प्रतिस्पर्धा रहित माहौल पैदा करना होता है। इससे सरकार का टैक्स संग्रहण पर होने वाला ख़र्च बेहद कम हो जाता है। बाज़ार में कम कारोबारी होने से उनपर नज़र रखना आसान होता है। इससे टैक्स चोरी में भी कमी आती है। राजनीतिक तौर पर फायदा ये है कि एकमुश्त बहुत सारा चंदा एक ही जगह से मिल जाता है।
इस माॅडल में बड़ा कारोबारी सबसे ज़्यादा फायदे में रहता है। एक तो बाज़ार से चुनौती देने वाले और सस्ते विकल्प ग़ायब हो जाते हैं। दूसरे कारोबार चौपट होने के बाद ट्रेंड लोग सस्ती लेबर में तब्दील हो जाते हैं। अमेरिका या इज़रायल में छोटे कारोबारी या व्यक्तिगत उद्यम बेहद कम हैं। वहां अपनी दुकान खोलने या कारोबार में इतनी क़ानूनी दिक़्क़त हैं कि लोग किसी मल्टीनेशनल कंपनी के स्टोर में नौकरी करना पसंद करते हैं। इसके चलते वहां संगठित रिटेल चेन और बहुराष्ट्रीय उत्पादक पनपते जाते हैं।

यही वजह है कि वाॅलमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिन देशों में कारोबार करने जाती हैं वहां लाबिइंग करके पहले मन-माफिक़ कानून बनवाती है। फिर असंगठित क्षेत्र को निशाना बनाती है। इसके बाद सस्ते सामान से बाज़ार पाट देती हैं। स्थानीय कारोबारियों की जगह बड़ी रिटेल चेन दिखने लगती हैं। सामान सस्ता मिलने की वजह से शुरू-शुरु में लोग भी इन्हें हाथों-हाथ लेते हैं।
इसका असर क्या होता है? जैसे ही बाज़ार से प्रतिस्पर्धा ख़त्म हुई और बाज़ार पर एकाधिकार हुआ फिर ये कंपनियां अपनी मर्ज़ी से कारोबार करती हैं। लेकिन ये माॅडल भारत जैसे देश में कितना सफल है? अमेरिका और इज़रायल के मुक़ाबले भारत की आबादी इसमें बड़ी बाधा है। जितने लोग असंगठित क्षेत्र से बेरोज़गार होंगे उतनों को नयी व्यवस्था में रोज़गार नामुमकिन है। ग़रीब, कम पढ़े लिखे और अंग्रेज़ी न जानने वाले के लिए इसमें जगह ही नहीं है।
यही वजह है कि जीडीपी बढ़ने के सरकार के दावों के बावजूद कारोबार चौपट है और बेरोज़गारी बढ़ रही है। नयी व्यवस्था में गिनती की सौ से भी कम कंपनियां तेज़ी से फैल रही हैं लेकिन लाखों उत्पादन इकाइयां बंद हो गई हैं। कुछ स्टोर्स खुले हैं जो शानदार कारोबार कर रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ऑनलाइन कारोबार भी बढ़ा है मगर नुक्कड़ के लालाजी परेशान हैं। रिलायंस, अडानी, जिंदल, डालमिया, रामदेव और गोयनका भारत नहीं हैं। उनका कारोबार हज़ार गुना और मुनाफा लाख गुना बढ़ने का मतलब भारत का विकास नहीं है। अर्थव्यवस्था 12% की दर से भी बढ़े तो इसका आमजन को कोई फायदा नहीं मिलने वाला क्योंकि ये औद्योगिक घरानों के मुनाफे और धंधे की बढ़ोत्तरी है। जब तक इस पैसे का विकेंद्रीकरण नहीं होगा, यानि आम आदमी का रोज़गार और आम व्यापारी का कारोबार नहीं बढ़ेगा विकास दर में फीसदी बढ़ते रहेंगे और हमारे संसाधनों पर ईस्ट इंडिया कंपनियां पैदा होती रहेंगी।

(लेख़क परिचय: यह आर्टिकल ज़ैगम मुरतज़ा की फेसबुक वॉल से लिया गया है.)

Sunday, September 2, 2018

मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल का निष्पक्ष मूल्यांकन करना हो तो 2014 के चुनाव में मोदी जी द्वारा किये गये वादे और आज की हक़ीक़त को ध्यान से देखिये कहा गया था

ग़रीब हो या अमीर हर व्यक्ति बड़े से बड़े कष्ट को ये कहकर बर्दाश्त कर लेता है कि “जो कुछ भी हो रहा है भगवान की मर्ज़ी” क्या आपको नहीं लगता है कि ऐसा ही कुछ इस समय देश की जनता के साथ हो रहा है? क्या आपको ‘शोले’ फ़िल्म का वो दृश्य नहीं याद आ रहा है जिसमें अमिताभ बच्चन अपने दोस्त धर्मेन्द्र की हर बुराई गिनाने के बाद कहता है तो फिर मौसी बसंती के साथ वीरू का रिश्ता पक्का समझू?
मौसी ने तो जय को मना कर दिया था पता नही आप मना कर पाएंगे या एक बार फिर गप्पू के चक्कर में फंस जाएंगे? राजशाही व्यवस्था में भी राजा के कारिंदे ग़रीबों को यही समझाया करते थे तुम्हारे जीवन में जो भी कष्ट है वो तुम्हारे पिछले दिनो का पाप है जनता भी यही मानकर बैठ जाती थी। हमारी भुखमरी, ग़रीबी, आशिक्षा में राजा का कोई दोष नहीं, ये सब तो पिछले जन्म का पाप है। ऐसा ही कुछ इस वक़्त देश में हो रहा है।

मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल का निष्पक्ष मूल्यांकन करना हो तो 2014 के चुनाव में मोदी जी द्वारा किये गये वादे और आज की हक़ीक़त को ध्यान से देखिये कहा गया था:-

1. इतना काला धन लायेंगे हर आदमी के खाते में 15 लाख रुपये जमा हो जायेगा। आज तक 15 पैसे भी किसी के खाते में नहीं आये, हां स्विस बैंक में कालाधन ज़रूर दोगुना हो गया।

2. कहा गया युवाओं को 2 करोड़ रोज़गार देंगे, 84 प्रतिशत रोज़गार घटा है मोदी जी के राज में। अब तो रोज़गार का आंकड़ा भी आना बंद हो गया।

3. बेटियों को सुरक्षा देने की बात कहकर मात्र 15 पैसे प्रति महिला प्रतिदिन ख़र्च का प्रावधान बजट में रखा गया। भाजपा के तमाम मंत्री विधायक और नेता बलात्कार और हत्या के मामले में लिप्त पाये गये।

4. महंगाई कम करने का वादा करके 85 रुपये लीटर पेट्रोल और 75 रु लीटर डीज़ल बेचा गया। प्याज़, आलू और चीनी के दाम समय-समय पर बढ़ाये गये।

5. डालर का दाम 40 रुपये करने की बात कहकर 71 रु पहुंचा दिया गया।

6. नोटबंदी का तुग़लकी फ़रमान जारी कर दिया गया। 99.3 फीसदी पैसा बैंकों में वापस आ गया। न काला धन ख़त्म हुआ, न आतंकवाद। हां 150 जिंदगियां लाइन में लगकर ज़रूर ख़त्म हो गई। देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। GDP नीचे गिर गई जिससे लगभग 2.25 लाख करोड़ का घाटा हुआ।

7. One Nation One Tax के नाम पर GST लागू कर One Nation Multiple Tax का फ़ार्मुला लगा दिया गया। आज व्यापारी अपना धंधा करने के बजाय दिन रात हिसाब किताब में परेशान रहता है।

8. किसान आत्महत्याएं करने को मजबूर हैं। आज़ादी के बाद पहली बार अपनी फ़सल का उचित दाम न मिलने व क़र्ज़ माफ़ न किये जाने के विरोध में किसानो ने PMO के सामने नग्न प्रदर्शन करके अपना मलमूत्र तक पिया। अपनी उपज को खेतों में जलाकर और सड़कों पर नष्ट करके अपना विरोध दर्ज कराया।

9. विदेशी यात्राओं पर पानी की तरह पैसा बहाकर इन्वेस्टमेंट के नाम पर दिखावा किया गया।

10. राष्ट्रीय सुरक्षा और देश भक्ति की दुहाई देने वाली सरकार के राज में पाकिस्तान द्वारा सबसे अधिक सीमा का उल्लंघन किया गया। डोकलाम में लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है।

11. एक के बदले 10 सिर काटने की बात कहकर नवाज़ शरीफ़ के बर्थडे का केक काटा गया। ISI से पठानकोट की जांच कराई गई। पाकिस्तान को टक्कर देने की बात कहकर वहां से शक्कर मंगाई गई, अब तो पाकिस्तान की सेना के साथ साझा युद्ध अभ्यास का शर्मनाक फ़ैसला भी ले लिया गया है।

12. 500 करोड़ के बजाय 1600 करोड़ का जहाज़ ख़रीदकर राफ़ेल रक्षा सौदे में हज़ारों करोड़ की दलाली खाई गई। चेहरे पे जो लाली है राफ़ेल की दलाली है।

13. अफ़ज़ल गुरु पर रोज सवाल पूछने वालों ने अफ़ज़ल गुरु को शहीद मनाने वाली PDP के साथ सरकार बनाई।

14. बैंकों में जमा जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा बड़े-बड़े उद्योगपतियों को रेवड़ी की तरह क़र्ज़ के रूप में बांट दिया गया। चंद उद्योगपतियों पर 8.55 लाख करोड़ का क़र्ज़ बाक़ी है। इन बेइमानों से पैसा वापस लाना तो दूर 2100 करोड़ का क़र्ज़ा लेकर ललित मोदी भाग गया। 9 हज़ार करोड़ रुपये लेकर विजय मल्ल्या भाग गया। 21 हज़ार करोड़ लेकर निरव मोदी भी भाग गया और हमको काला धन लाने का सपना दिखाया जा रहा है।

15. लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारों को राज्यपाल और उपराज्यपाल के ज़रिये अस्थिर करके लोकतन्त्र और संविधान का माखौल उड़ाया गया।
इन तमाम झूठे जुमलों के साथ जनता को मूर्ख बनाने का काम जारी है। देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का काम भी ख़ूब चल रहा है। मुसलमानो और दलितों के ख़िलाफ़ जमकर नफ़रत फेलाई जा रही है। एक लाख से लेकर पहलू खान तक गाय के नाम पर इंसान की जान ली जाती रही, लेकिन मोदी जी के मुंह से समय पर एक शब्द भी न निकला। हां लिंचिंग करके इंसान की जान लेने वाले क़ातिलों को मोदी जी के मंत्री ने माला पहनाकर स्वागत ज़रूर किया।

उना से लेकर उत्तर प्रदेश तक दलितों पर अत्याचार जारी है। उनकी हत्यायें भी की जा रही हैं, लेकिन मोदी जी ख़ामोश हैं। दरअसल असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिये हमको आपको इन नक़ली मुद्दों पर उलझाये रखा गया जिससे सारे गुनाह छिपायें जा सकें।

मोदी जी का बौधिक ज्ञान भी माशाअल्लाह है… कुछ बातें हंसने के लिये, याद कीजिये….

1. मोदी जी ने तक्षशिला को बिहार में बता दिया।
2. शहीदे आज़म भगत सिंह को अंडमान निकोबार की जेल में पहुंचा दिया।
3. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दयानंद सरस्वती से मिलवा दिया।
4. कबीर गुरुनानक देव और बाबा गोरखनाथ को एक साथ बैठा दिया, जबकि तीनों के इस दुनिया में होने के बीच सैकड़ों साल का अंतर है।
5. Strength की अंग्रेज़ी ही विदेश में जाकर बदल दी।
6. सरकारी रोज़गार देने का वादा करके पकौड़ा रोज़गार, ऑटो टैक्सी रोज़गार को अपनी उपलब्धि गिना दी।
7. पिछले दिनो नाले के गैस से चाय तक बनवा दी।
ऐसे महापुरुष आदरणीय मोदी जी की उपलब्धियों के बारे में ज़रा गम्भीरता से सोचिये। कहीं ऐसा तो नही की सिर्फ़ सोते समय ख़ामोश रहने वाले मोदी जी ने दिन रात भाषण दे-देकर आपकी सोचने समझने की शक्ति छीन ली है। क्या हर तरह से देश का बेड़ा गरक करने वाले मोदी जी का वाक़ई कोई विकल्प नही? क्या हम फिर से अपनी ज़िंदगी को जोखिम में डालने और देश को बर्बादी की कगार पर पहुंचाने के लिये तैयार हैं, क्यूँकि भाजपाईयों और गोदी मीडिया ने अपनी सारी नाकामियों को छिपाने का एक नया फ़ार्मूला खोज लिया।

न समझोगे तो मिट जाओगे…. ये हिंदुस्तान वालों तुम्हारी दांसता तक न होगी दस्तानों में।

(इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति ‘जनता का रिपोर्टर’ उत्तरदायी नहीं है।)