Wednesday, July 10, 2019

Railway Privatization स्वागत कीजिए हजारों बेरोजगारों की छाती पर दौड़ने वाली देश की पहली प्राइवेट ट्रेन का..!

स्वागत कीजिए हजारों बेरोजगारों की छाती पर दौड़ने वाली देश की पहली प्राइवेट ट्रेन का..!

स्वागत कीजिए देश की पहली प्राइवेट ट्रेन का!....... जी हां, दिल्ली और लखनऊ के बीच चलने वाली तेजस एक्सप्रेस देश की पहली प्राइवेट ट्रेन होगी जो उन हजारों बेरोजगारो की छाती पर से दौड़ने वाली है जो सरकारी रेलवे में नौकरी का सपना संजोए बैठे हुए हैं।
इंडियन रेलवे कोई छोटी मोटी संस्था नही है। भारतीय रेलवे 12,000 से अधिक ट्रेनों का संचालन करता है, जिसमें 2 करोड़ 30 लाख यात्री रोज यात्रा करते हैं। भारतीय रेल लगभग एक 'ऑस्ट्रेलिया' को रोज़ ढोती है, रेलवे में करीब 17 लाख कर्मचारी काम करते हैं और इस लिहाज से यह दुनिया का सातवां सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला संस्थान है। इस लिहाज से इसका निजीकरण किया जाना ऐसे प्रश्न खड़े करता है जिस पर तुरंत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
यदि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में निजीकरण की तरफ बढ़ने की गति 1,2,3,4,5,6,7 थी तो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह गति 2,4,8,16,32,64,128,256, की तरह होने वाली है केंद्र सरकार ने तमाम विरोध के बीच आखिरकार रेलवे के निजीकरण की ओर दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार पकड़ ली है, सरकार रेलवे के कॉरपोरेटीकरण और निजीकरण पर 'आक्रामक तरीके से' आगे बढ़ना चाहती है।
मोदी- 1 में 2014 सितम्बर में, भारतीय रेल में वित्त जुटाने की सिफारिशें देने के लिये, भारतीय रेल ने बिबेक देबरॉय समिति का गठन किया था। जून 2015 को प्रस्तुत बिबेक देबरॉय समिति की रिपोर्ट में रेलवे के निगमीकरण की सिफारिश की गयी थी और कहा गया था कि सरकार के रेल मंत्रालय को सिर्फ नीतियां बनाने का काम करना चाहिये, जबकि निजी खिलाड़ियों को यात्री व माल सेवा प्रदान करनी चाहिये। कमिटी की सिफ़ारिशों में तर्क दिया गया कि ब्रिटेन की तरह ट्रेन संचालन के काम को पटरियों से अलग कर देना चाहिए।
इस समिति की सिफारिशों के रेलवे कर्मचारियों ने पुरजोर विरोध किया, पीएम मोदी ने भी साल 2015 में वाराणसी के डीजल लोको वर्क्स के मजदूरों को संबोधित करते हुए कहा था कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाएगा।
लेकिन जैसे ही मोदी सरकार दुबारा चुनकर आयी उसने सबसे पहला जो काम किया वह यह था कि तेज गति से रेलवे के निजीकरण ओर निगमीकरण की ओर आगे बढ़ा जाए। इसके तहत रेलवे बोर्ड से एक एक्शन प्लान- 100 तैयार करने को कहा गया जिसपर 100 दिन के भीतर ही कार्रवाई करने के आदेश दिए गए इसके तहत आइआरसीटीसी को लखनऊ से दिल्ली सहित दो रूटों पर निजी क्षेत्र की मदद से प्रीमियम ट्रेन चलाने और रेल कोच फैक्ट्री रायबरेली, कपूरथला सहित सभी प्रोडक्शन यूनिटों का निगमीकरण का लक्ष्य रखा गया है।
लेकिन रेलवे के निजीकरण करने में जो सबसे महत्वपूर्ण बात है उसकी तरफ किसी का ध्यान नही है। कोई भी प्राइवेट ऑपरेटर घाटे वाले ट्रेक पर गाड़ियां नही दोड़ाएगा वो उसी ट्रेक पर ऑपरेट करेगा जो जेब भरे पर्यटकों के रूट हो यानी निजी पूंजीपति सिर्फ रेलवे के मुनाफ़ेदार रास्तों में ही रुचि रखेंगे, जो माल ढोने में या बुलेट रेलगाड़ियों जैसी अमीरों के लिये सेवा में होगा। भारतीय रेल के पास सिर्फ घाटे में चलने वाले रेलमार्ग बचेंगे, जिसमें करोड़ों लोग कम भाड़े में अमानवीय परिस्थिति में यात्रा करेंगे......यही मोदी सरकार की योजना है जिन रेल कोच फैक्टरियों का निगमीकरण किया जा रहा है वह लगातार मुनाफा कमा रही थी।
यह निगमीकरण ओर निजीकरण रेलवे को पूरी तरह से बर्बाद कर देगा यह तथ्य हम जितना जल्दी समझ ले उतना अच्छा है।

Tuesday, July 9, 2019

ऐसा क्या था बजट में, जिसकी वजह से शेयर बाज़ार धड़ाम से गिर गया?

ऐसा क्या था बजट में, जिसकी वजह से शेयर बाज़ार धड़ाम से गिर गया?

दो दिन से एक बात की बड़ी चर्चा है. शेयर बाजार गिर रहा है. हर कोई इसको लेकर अपने-अपने हिसाब से चर्चा कर रहा है. आखिर बजट के बाद से शेयर बाजार क्यों गिर रहा है? वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे निवेशकों में खलबली मच गई. ऐसे कैसे भारत 5 ट्रिलियन की इकॉनमी बन पाएगा. दो-तीन दिन में निवेशकों के 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा डूब चुके हैं. शेयर बाजार और उसकी ये गिरावट हम आपको समझाएंगे आसान भाषा में. आखिर शेयर बाजार की गिरावट क्यों हो रही है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? और सबसे बड़ी बात इसका हमारे आपके ऊपर क्या असर पड़ने वाला है?
सवाल-1- सबसे पहले ये जान लीजिए शेयर बाजार है क्या और यहां पैसा किसका लगा है?
शेयर बाजार को समझना बहुत ही आसान है. जैसे हमारे-आपके मुहल्ले में सब्जी का बाजार लगता है. लोग यहां से आलू-टमाटर खरीदते हैं. वैसे ही देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने शेयर माने कंपनी का एक निश्चित हिस्सा बेचती हैं. शेयरों की ये खरीदफरोख्त बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी BSE और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज यानी NSE के जरिए होती है. शेयर खरीदने वाले 4 तरह के लोग होते हैं.
1- रिटेल इनवेस्टर यानी साधारण हमारे-आपके जैसे आम निवेशक.
2- सामाजिक संस्थाएं मतलब ये कि ऐसी संस्थाएं जिन्हें कुछ लोग मिलाकर बनाते हैं.
3- देसी वित्तीय संस्थाएं माने देश के बैंक, बीमा कंपनियां, पेंशन और म्यूचुअल फंड कंपनियां वगैरह.
4- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक यानी FPI माने फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर. ये विदेश में बनी वे संस्थाएं होती हैं, जो भारत में निवेश करने के लिए बनाई जाती हैं. इन निवेशकों को मत भूलिएगा क्योंकि भारत का शेयर बाजार FPI के निवेश से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है. FPI का भारत के शेयर बाजार में जमकर पैसा लगा हुआ है.
सवाल-2- ऐसा क्या हुआ जिससे शेयर बाजार लहूलुहान है?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में 3 ऐसे प्रस्ताव किए, जिनसे शेयर बाजार में भगदड़ मच गई. लोग अपने शेयर बेचकर बाजार से निकलने लगे.
बजट प्रस्ताव नंबर-1
लिस्टेड कंपनियों में न्यूनतम पब्लिक होल्डिंग 25 से बढ़ाकर 35 फीसदी की जाएगी.
इस प्रस्ताव का मतलब क्या है?
बजट के इस प्रावधान के 5 मायने हैं.
1– इस प्रस्ताव का मतलब ये है कि शेयर बाजार में जितनी भी कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, उन्हें अपनी कंपनी के कम से कम 35 फीसदी शेयर अब निवेशकों को बेचने होंगे.
2- इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में इस वक्त 4 हजार 700 कंपनियां रजिस्टर्ड यानी लिस्टेड हैं. इनमें से एक चौथाई कंपनियों में प्रमोटरों यानी कंपनी के मुख्य मालिकों की हिस्सेदारी 65 फीसदी से ज्यादा है.
3- निवेशकों की चिंता ये है कि अगर सरकार का ये प्रस्ताव लागू हो गया तो कंपनियों के प्रमोटरों को करीब 4 लाख करोड़ रुपए के शेयर बेचने होंगे. इससे बाजार में शेयरों की बाढ़ आ जाएगी.
4- साल 2010 में सेबी ने कंपनियों में पब्लिक होल्डिंग बढ़ाकर 25 फीसदी की थी, तब प्रमोटरों को शेयर बेचने के लिए 3 साल दिए गए थे. इस बार ऐसा नहीं है. कंपनी मालिकों को अपनी हिस्सेदारी बेचने का वक्त नहीं मिल रहा.
5- इन वजहों से बाजार को आशंका है कि जो मल्टीनेशनल कंपनियां और आईटी कंपनियां लोकल फंडिंग के सहारे नहीं हैं. और उनमें प्रमोटरों की हिस्सेदारी 65 फीसदी से ज्यादा है, वे खुद को मार्केट से डीलिस्ट कर सकती हैं.
बजट प्रस्ताव नंबर-2
शेयर के बायबैक पर 20 फीसदी टैक्स लगेगा.
इस प्रस्ताव का मतलब क्या है?
कई बार कंपनियां निवेशकों से अपने शेयर वापस खरीदती हैं. इसे शेयर बायबैक कहा जाता है. ये IPO का उलट होता है. मतलब ये कि आईपीओ में कंपनियां शेयर बेचती हैं और बायबैक में वापस अपने ही शेयर खरीद लेती हैं. अब तक कंपनियों को निवेशकों से शेयर वापस खरीदने पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था. अब उन्हें 20 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ेगा. कंपनियां अपने निवेशकों को मुनाफा बांटने के लिए बायबैक ऑफर लाती हैं. अब ये टैक्स लग जाने से कंपनियों को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी होगी. माना जा रहा है कि सरकार का ये प्रस्ताव भी निवेशकों पसंद नहीं आ रहा है.
बजट प्रस्ताव नंबर-3
देश के अमीरों को ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा. साल में 2 से 5 करोड़ रुपए की इनकम पर सरचार्ज 15 से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया गया है. ऐसे लोगों को अब 35.88 फीसदी टैक्स देना होगा. 5 करोड़ रुपए से ज्यादा की आमदनी पर सरचार्ज 37 फीसदी किया गया है. ऐसे लोगों को 42.7 फीसदी टैक्स देना पड़ेगा.
इस प्रस्ताव का मतलब क्या है?
बजट के इस प्रस्ताव से शेयर बाजार में सबसे ज्यादा खलबली है. देश के अमीरों और कुछ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी FPI पर अब तक एक ही तरह का टैक्स लगता रहा है. अब जब सुपर रिच लोगों के टैक्स पर सरचार्ज बढ़ा दिया गया है तो इसका मतलब ये है कि विदेशी निवेशक भी इसी दायरे में आएंगे. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनकम टैक्स पर सरचार्ज बढ़ जाने से विदेशी निवेशकों को ज्यादा टैक्स देना होगा. इसी वजह से FPI ने शेयर बाजार से अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया है. 5 जुलाई यानी जिस दिन बजट आया और फिर उसके बाद 8 जुलाई को FPI ने जमकर अपने शेयर बेचे. इससे भारत के शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई.
सवाल-3- क्या बाजार में गिरावट की सिर्फ इतनी ही वजहें हैं?
शेयर बाजार में गिरावट के लिए कुछ और वजहों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है. मसलन-
1- अमेरिका में रोजगार के आंकड़े जून में बहुत अच्छे आए हैं. मतलब ये कि अमेरिका में लोगों को रोजगार ज्यादा मिलने शुरू हो गए हैं. इसके दो मायने हैं एक- अमेरिका की कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. दूसरा- अमेरिका में बैंकों की ब्याज दरें अब जल्दी कम नहीं होंगी. इससे दुनिया भर के निवेशक अमेरिका के बाजार में पैसा लगाना शुरू कर सकते हैं.
2- अमेरिका में रोजगार के आंकड़े अच्छे आ जाने से एशिया के हॉन्गकॉन्ग, साउथ कोरिया और जापान के शेयर बाजार भी कमजोर हो गए हैं. मतलब ये कि इन देशों के शेयर बाजार से भी निवेशक पैसा निकाल रहे हैं. वे अमेरिका की तरफ जा रहे हैं.
3- कच्चा तेल कुछ महंगा हो गया है. और अमेरिका का डॉलर कुछ मजबूत हुआ है. इन दोनों की मजबूती का मतलब ये होता है कि भारत को अब तेल पर ज्यादा खर्च करना होगा. चूंकि तेल खरीदने की मुद्रा डॉलर है, तो इसका मतलब ये हुआ कि भारत पहले महंगा डॉलर खरीदे. फिर उस महंगे डॉलर से महंगा कच्चा तेल खरीदे.
तो इन कुछ वजहों से भारत का शेयर बाजार इस वक्त परेशान है. 9 जुलाई को भी शेयर बाजार एकदम फ्लैट बंद हुआ यानी अभी उसमें बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है.

शेयर मार्केट में जब दिक्कत आती है तो लोगो की हवाइयां उड़ने लगती हैं.