Monday, August 28, 2017

अगर हो गया है आपका फेसबुक अकाउंट हैक, तो अपनाएं ये टिप्स और ट्रिक्स..

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक इस वक्त दुनियाभर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं अगर किसी वीडियो और फोटो को वायरल करना हो तो यह प्लेटफॉर्म सबसे बेहतर माना जाता है। हालांकि कुछ दिनों से इस नेटवर्किंग साइट पर लोगों के अकाउंट हैक होने जैसे मामले सामने आ रहे हैं जिसके चलते यूजर्स को परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं।
कैसे फेसबुक यूजर्स कुछ टिप्स और ट्रिक्स से जरिए फेसबुक अकाउंट हैक होने जैसी समस्या से निजात पा सकते हैं।

1. अगर आपका फेसबुक अकाउंट किसी ने हैक कर लिया है और वह आपके अकाउंट से कुछ ऐसे स्टेटस पोस्ट कर रहा है जो आपने नहीं किए, तो उसके लिए आपको सबसे पहले फेसबुक को बताना होगा कि आपका अकाउंट हैक हो गया है। इसके लिए आपको https://www.facebook.com/hacked पर जाना होगा।

2. लिंक ओपन करने के बाद 'रिपोर्ट कॉम्प्रोमाइज्ड अकाउंट' की इंफोर्मेशन आएगी जिसके बाद आपको 'माई अकाउंट इज कॉम्प्रोमाइज्ड' पर क्लिक करना होगा।

3. 'माई अकाउंट इज कॉम्प्रोमाइज्ड' पर क्लिक करने के बाद नया पेज ओपन होगा जिसमें आपको अपने पुराना पासवर्ड वाला यूजरनेम, ई-मेल आईडी और मोबाइल नंबर में से कोई एक डालना होगा जो हैक हुआ है। फिर आपसे पुराना या नया पासवर्ड पूछा जाएगा जिसमें आपको दोनों में से कोई भी टाइप करके एंटर करना होगा। फिर आपसे नया पारवर्ड पूछा जाएगा और आपका अकाउंट खुल जाएगा।

4. कई बार ऐसा हो जाता है कि हैक करने वाला आपका यूजरनेम या फिर ई-मेल आईडी बदल देता है तो इसके लिए आपको मोबाइल नंबर दर्ज कराने और ई-मेल आईडी टाइप करने की बजाए रीसेट लिंक पर क्लिक करें और नया पासवर्ड डाल कर अपना पुराना अकाउंट फिर से चालू करें।

5. अगर आपको लगता है कि आपका अकाउंट हैक हो चुका है और पासवर्ड भी चेंज नहीं हुआ है तो इसके लिए आप भी यही प्रोसेस अपना सकते हैं जिसमें नया पासवर्ड ही डालना होगा। अकाउंट खुलने के बाद फेसबुक द्वारा आपसे पूछा जाएगा कि किस तरह की समस्याएं आ रही हैं जिसमें आपको सेलेक्ट करके सब्मिट करना होगा और फिर आपका अकाउंट सिक्योर हो जाएगा।

Sunday, August 27, 2017

आखिर कहां गया कालाधन? 1000 के 99% नोट RBI के पास आए वापस!

नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद देश का हर शख्स चाहे वह एक आदमी हो, कोई राजनीतिक पार्टी हो या फिर सुप्रीम कोर्ट ही क्यों न हो, सभी को इस बात का इंतजार था कि आखिर नोटबंदी से कितने पुराने नोट बैंक में वापस आए। अब इंतजार कर रहे लोगों के लिए थोड़ी राहत भरी खबर आई है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर आंकड़ा देते हुए बताया है कि लगभग 99 फीसदी 1000 रुपए के नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ चुके हैं।
आंकड़ों के अनुसार मार्च 2017 तक 8,925 करोड़ रुपए के 1000 के नोट सर्कुलेशन में थे। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक सर्कुलेशन वाले नोट वह हैं, जो भारतीय रिजर्व बैंक से बाहर हैं।
3 फरवरी को वित्त राज्य मंत्री संतोष अग्रवाल द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक 8 नवंबर को 6.86 करोड़ रुपए से अधिक के 1000 रुपए के नोट सर्कुलेशन में थे। इस तरह मार्च 2017 तक सर्कुलेशन वाले 1000 रुपए के नोट कुल नोटों का 1.3 फीसदी थे।

ऐसे में यह साफ है कि 98.7 फीसदी 1000 रुपए के नोट भारतीय रिजर्व बैंक में वापस लौट चुके हैं। आपको बता दें कि नोटबंदी के समय 15.4 लाख करोड़ रुपए की करंसी चलन से बाहर की गई थी, जिसमें 44 फीसदी 1000 रुपए के नोट थे और 56 फीसदी 500 रुपए के नोट थे। माना जा रहा है कि जिस तरह 1000 के करीब 99 फीसदी नोट वापस आ चुके हैं, वैसे ही 500 रुपए के नोट भी वापस आए होंगे।

अब सवाल यही उठता है कि जब लगभग सारे नोट वापस ही आ गए, तो कालाधन कहां गया?

Saturday, August 26, 2017

जेल जाते-जाते मोदी-शाह की सियासी जमीन हिला गए राम रहीम, अब जाटों की शरण में जाएगी बीजेपी..

नई दिल्ली। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को रेप केस में दोषी करार दिए जाने के बाद बीजेपी की मुश्किल बढ़ गई है। राम रहीम को दोषी करार दिए जाने के बाद भड़की हिंसा के बाद हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को हटाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी खट्टर को हटाने के पक्ष में नहीं हैं तो कुछ खबरों में खट्टर को हटाकर सुषमा स्वराज को हरियाणा की कमान सौंपे जाने की बात कही जा रही है। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि खट्टर को हटाया जाए या नहीं? खट्टर हरियाणा के सीएम रहेंगे या कोई और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा। डेरा प्रमुख को दोषी करार दिए जाने के बाद बीजेपी के सामने जो राजनीतिक संकट खड़ा हुआ, वह सीएम कैंडिडेट के सवाल से कहीं ज्यादा बड़ा है।
हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव में आईएनएलडी को जाट मतदाताओं के 44 फीसदी वोट मिले, जबकि कांग्रेस ने 24 फीसदी जाट वोट हासिल किए। बीजेपी को केवल 17 प्रतिशत जाट वोट मिले थे। इसके बाद भी बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही थी। सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को सबसे बड़ा फायदा जाट बंटने से हुआ। बीजेपी को ब्राह्मण मतदाताओं के 47 फीसदी, पंजाबी खत्री वर्ग का 63 फीसदी और दूसरी अगड़ी जातियों के 49 फीसदी वोट मिले। इन समीकरणों के चलते बीजेपी ने बिना जाट वोट हासिल किए पहली बार हरियाणा में सरकार बनाई और गैर जाट सीएम को सूबे की कमान सौंपी।

हरियाणा में पहली बार कमल खिलाने वाले डेरा समर्थक इस समय बीजेपी के सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं। ऐसे में बीजेपी जाट वोटरों को लुभाने का प्रयास कर सकती है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जाट वोटरों पर पकड़ रखने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ बीजेपी नेताओं की बात हुई थी। पार्टी अब जाट वोटरों पर फोकस कर सकती है। अब वह कैसे उन्हें रिझाती है, क्या देखने वाली बात होगी। पीएम मोदी और अमित शाह सीएम कैंडिडेट बदलते हैं या किसी बड़े जाट नेता को पाटी में शामिल कराते हैं या पार्टी के ही किसी जाट नेता को कमान सौंपते हैं।

हरियाणा में 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही। हरियाणा की कुल 90 विधानसभा सीटों में 36 से 40 सीटों पर डेरा समर्थकों का प्रभाव है। यही कारण रहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने डेरा प्रमुख राम रहीम से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद गुरमीत राम रहीम ने मतदान से ठीक चार दिन पहले बीजेपी को समर्थन का ऐलान किया। चुनाव बाद बीजेपी को हरियाणा में 48 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डेरा सच्चा सौदा की बीजेपी सरकार बनवाने में कितनी अहम भूमिका रही।
बाबा राम रहीम का हरियाणा के नौ जिलों की सीटों पर जबरदस्त प्रभाव है। हरियाणा में उनके 20 से 25 लाख अनुयायी बताए जाते हैं। इस बार के चुनाव में बीजेपी ने डेरा का समर्थन होने से उचाना कलां, टोहाना, अंबाला सिटी, हिसार, नारनौंद, बवानी खेड़ा, भिवानी, शाहबाद, थानेसर, लाडवा, मौलाना और पेहवा सीटों पर जीत दर्ज की थी। इससे पहले के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इनमें से सिर्फ भिवानी सीट पर ही जीत हासिल कर सकी थी।

पिताजी की माफी: बिस्तर पर बुलाने के लिए ये कोड वर्ड यूज़ करता था राम रहीम..

नई दिल्ली। आख़िर क्या वजह है कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में अदालत द्वारा दोषी करार देने के बाद भी समर्थक यह मानने को तैयार नहीं होते कि उनके गुरु ने कुछ ग़लत किया है?
पहली बात तो यह है कि लोगों की जो उम्मीदें समाज में पूरी नहीं होतीं, वे डेरे में पूरी हो रही होती हैं. उनके मन में बात आती है कि यह तो बहुत अच्छी व्यवस्था है. दूसरी बात यह कि डेरे के संचालक या प्रमुख को वे सुपरमैन या सुपर ह्यूमन बीइंग मानते हैं. उन्हें लगता है कि वे तो गलती कर ही नहीं सकते.
  धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाला डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम के कुकर्मों का काला चिट्ठा अब धीरे-धीरे लोगों के सामने आने लगा है। तकरीबन 10 साल पहले रेप होने के बाद आखिरकार रेप पीड़िता महिलाओं ने अपने उपर आपबीती लोगों को बताई है। कोर्ट के सामने दोनों साध्वी सिलसिलेवार तरीके से पूरे घटनाक्रम की जानकारी कोर्ट के सामने रखी। जिस तरह से पीड़ित महिलाओं ने आपबीती बताई है उसके बाद बाबा राम रहीम की घिनौनी मानसिकता और आपराधिक प्रवृत्ति खुलकर लोगों के सामने आ गई है।
महिलाओं ने कोर्ट के सामने बाबा राम रहीम की गुफा की खौफनाक, वहसी और दरिंदगी की कहानी बताते हुए कहा कि गुफा में पॉवरफुल बाबा महिलाओं का रेप करता था, यह एक ऐसी गुफा है जिसमें बाबा रहता था, इसे खास तरीके से बनाया गया है। पीड़िताओं ने जो आपबीती बताई उसमें उन्होंने कहा कि रेप के दौरान बाबा खुद को भगवान बताया करता था।
भगवान के नाम का किस तरह से राम रहीम मखौल उड़ाता था और अपनी हवस को पूरी करने का जरिया बनाता था यह पीड़िताओं के बयान से साफ होता है कि बाबा के रोम-रोम में हवस बसता था। पीड़िता महिला ने बताया कि बाबा अपने सेवकों से माफी कोड वर्ड का इस्तेमाल करता था, जिसका मतलब रेप होता था। बाबा की गुफा की सुरक्षा में सिर्फ महिला गार्ड को ही तैनात किया जाता था।
वहीं कुछ अन्य महिलाएं जो किसी तरह से सुरक्षित बाबा के चंगुल से बाहर आई उनका कहना हैं कि लड़कियां अपनी मर्जी से डेरा के भीतर रहती हैं, क्योंकि वह बाबा से काफी प्रभावित हैं, जिस तरह का बाबा का धार्मिक कद है वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करता है, इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि उनके परिवार के सदस्य भी बाबा के जबरदस्त समर्थक हैं।
हरियाणा के यमुनागर की एक और महिला जोकि सुरक्षित बाबा के चंगुल से बची महिला ने सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज एके वर्मा के सामने 28 फरवरी 2009 को बताया था कि उसने 1999 में बाबा के यहां गई, वह अपने भाई की वजह से बाबा के पास गई थी, लेकिन बाद में मेरे भाई ने जब मेरे लिए इंसाफ की बात की तो उसकी हत्या कर दी गई।
साध्वी ने कोर्ट में बताया कि शुरुआत में उसे समझ नहीं आता था जब राम रहीम की शिष्य महिलाएं उससे पूछती थीं कि क्या तुम्हे पिताजी से माफी मिल गई है। लेकिन पीड़िता को यह बात तब साफ हो गई थी जब रामरहीम ने उसे 28/29 अगस्त 1999 को अपनी गुफा के अंदर बुलाया और उसके साथ रेप किया।
9 सितंबर 2010 को एक और साध्वी ने बताया कि वह 1998 में डेरा गई और उसे बाबा राम रहीम ने उसे नजम नाम दिया। महिला सिरसा की ही रहने वाली है, वह अपने माता-पिता की वजह से बाबा की भक्त हुई और बाद में वह डेरा में ही पढ़ाने लगी। सितंबर 1999 में जब महिला गुफा की सुरक्षा कर रही थी तो बाबा ने उसे गुफा के अंदर बुलाया गया और उसके साथ रेप किया, यही नहीं उसने उसे धमकी दी की वह गुफा के अंदर हो रहे अपराध के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगी।

Friday, August 25, 2017

राम रहीम की संपत्ति जब्त करने का आदेश, जानिए कितने करोड़ों की है प्रॉपर्टी

चंडीगढ़। रेप आरोप मे दोषी सिद्ध होने के बाद डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के समर्थकों की पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में हिंसा के बीच पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाइकोर्ट ने राम रहीम की पूरी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया है। हाइकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि डेरा समर्थकों की हिंसा से सार्वजनिक संपत्ति को जो भी नुकसान हुआ है उसकी भरपायी राम रहीम की संपत्ति से की जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 3 साल पहले तक बाबा की कुल सालाना कमाई करीब 60 करोड़ रुपए है।
राम रहीमा जिस डेरा सच्चा सौदा का मुखिया है उसे 1948 में शाह मस्ताना ने स्थापित किया था। डेरा के नाम पर हरियाणा के सिरसा में करीब 700 एकड़ जमीन है, इसके अलावा राजस्थान मे एक अस्पताल चलता है। राम रहीम के नाम पर एक गैस स्टेशन भी है। इसके अलावा दुनियाभर में डेरा सच्चा सौदा के करीब 250 आश्रम बताए जाते हैं। राम रहीम के नाम पर दुनिया में कई मार्केट कॉम्पलेक्स भी बताए जाते हैं।
राम रहीम की हरियाणा के सिरसा में लगभग 700 एकड़ खेती की जमीन है. तीन अस्पताल, एक इंटरनेशनल आई बैंक, गैस स्टेशन और मार्केट कॉम्प्लेक्स के अलावा दुनिया में करीब 250 आश्रम हैं. वहीं, राम रहीम को दोषी करार दिए जाने के बाद से उनके समर्थक उग्र हो गए हैं और तोड़फोड़ व आगजनी की वारदात को अंजाम दे रहे हैं.
डेरा सच्चा सौदा ने रिचेल चेन भी शुरू की हुई है जिसमें रोजमर्रा के इस्तेमाल का सामान बेचा जाता है। जो सामान बिकता है उसका ब्रांड डेरा के नाम ही है

राम रहीम की संपत्ति जब्त करने का आदेश, जानिए कितने करोड़ों की है प्रॉपर्टी

चंडीगढ़। रेप आरोप मे दोषी सिद्ध होने के बाद डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के समर्थकों की पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में हिंसा के बीच पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाइकोर्ट ने राम रहीम की पूरी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया है। हाइकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि डेरा समर्थकों की हिंसा से सार्वजनिक संपत्ति को जो भी नुकसान हुआ है उसकी भरपायी राम रहीम की संपत्ति से की जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 3 साल पहले तक बाबा की कुल सालाना कमाई करीब 60 करोड़ रुपए है।

राम रहीमा जिस डेरा सच्चा सौदा का मुखिया है उसे 1948 में शाह मस्ताना ने स्थापित किया था। डेरा के नाम पर हरियाणा के सिरसा में करीब 700 एकड़ जमीन है, इसके अलावा राजस्थान मे एक अस्पताल चलता है। राम रहीम के नाम पर एक गैस स्टेशन भी है। इसके अलावा दुनियाभर में डेरा सच्चा सौदा के करीब 250 आश्रम बताए जाते हैं। राम रहीम के नाम पर दुनिया में कई मार्केट कॉम्पलेक्स भी बताए जाते हैं।

राम रहीम की हरियाणा के सिरसा में लगभग 700 एकड़ खेती की जमीन है. तीन अस्पताल, एक इंटरनेशनल आई बैंक, गैस स्टेशन और मार्केट कॉम्प्लेक्स के अलावा दुनिया में करीब 250 आश्रम हैं. वहीं, राम रहीम को दोषी करार दिए जाने के बाद से उनके समर्थक उग्र हो गए हैं और तोड़फोड़ व आगजनी की वारदात को अंजाम दे रहे हैं.

डेरा सच्चा सौदा ने रिचेल चेन भी शुरू की हुई है जिसमें रोजमर्रा के इस्तेमाल का सामान बेचा जाता है। जो सामान बिकता है उसका ब्रांड डेरा के नाम ही है

Thursday, August 24, 2017

अभी अभी: योगी सरकार का बड़ा ऐलान, यादव-जाटव सहित इन 7 जातियों के आरक्षण होगे कम

मोदी सरकार ओबीसी  में सब कैटेगरी बनाने जा रही है..


योगी सरकार में आरक्षण को लेकर राजनाथ सिंह जैसा ही हमला होने जा रहा है। इस तरह से यादव-जाटव के साथ ही इन जातियों का आरक्षण करने का योगी सरकार ने फैसला कर लिया है। ये बातें योगी सरकार के ही कैबिनेट मंत्री ने कही है।
प्रदेश के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने आरक्षण को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि जाटव, यादव समेत 7 जातियों के आरक्षण का कोटा प्रदेश सरकार कम करेगी। उन्होंने कहा कि यदुवंशी और यादव समाज अपनी जाति की आबादी के अनुपात में 39 प्रतिशत आरक्षण का फायदा उठाते हैं।
अनुपात के आधार पर दिया जाएगा आरक्षण
– कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने बताया कि योगी सरकार अनुपात के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा।
– उन्होंने कहा कि जाटव और यादव समेत 7 जातियों के आरक्षण में कटौती होनी चाहिए।
– वे आबादी से ज्यादा इसका फायदा उठा रहे हैं।
– कैबिनेट मंत्री के मुताबिक यूपी सरकार यादव, जाटव जाति का कोटा उनकी क्षेणियों में कम करने जा रही है ।

Wednesday, August 23, 2017

पांचों सीटों पर अखिलेश यादव की जीत, दौड़ी साइकिल – कमल मुरझाया..

लखनऊ । उप चुनाव में सपा को बड़ी कामयाबी.. विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत को 6 महीना भी नहीं हुआ कमल मुरझाने लगा है। पांच सीटों पर हुए उप चुनाव में सभी सीटों को सपा ने फिर से जीत ली है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता से सपा की जीत बता रहे हैं।

उप चुनाव में गाजीपुर, हाथरस, फरूखाबाद, मेरठ और कौशांबी की सीट सपा ने जीत ली है।

उप चुनाव में सपा को बड़ी जीत हाशिल हुई है। मेरठ से अतुल प्रधान की पत्नी फिर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर फिर से जीत गई हैं। उन्हें भारी सफलता मिली है। यहां पर उनकी पत्नी पहले से ही जिला पंचायत अध्यक्ष थी। भाजपा नेताओं दबाव में अतुल प्रधान ने पत्नी से इस्तीफा दिलवा दिया था। अलुत प्रधान अखिलेश यादव के काफी करीबी माने जाते हैं।
औरैया से भाजपा समर्थित दीपू सिंह दो वोट से जीत गए हैं। गिनती में सपा 09 और भाजपा 12 मत के साथ 21 वोट पड़े। यहां पर भारी बवाल हुआ था।
यहां जाते समय अखिलेश यादव सहित हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

फर्रूखाबाद से श्रीमती ज्ञानदेवी कठेरिया जीत गई जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव। श्रीमती ज्ञानदेवी को 20 एवं श्रीमती राजकुमारी को मिले 09 वोटर। एक वोट निरस्त कर दिया गया।

Monday, August 21, 2017

कार्यकाल 2019 में ख़त्म तो 2022 के सपने क्यों दिखा रही है मोदी सरकार?...

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी जब जीतकर आई थी, तब उसने 'अच्छे दिन' लाने के लिए पाँच साल माँगे थे.
तीन साल गुजर गए हैं और सरकार के पास ऐसी कोई 'चमत्कारिक उपलब्धि' नहीं है, जिसे वह पेश कर सके. पर बड़ी 'एंटी इनकंबैंसी' भी नहीं है. इसी वजह से सरकार भविष्य की ग़ुलाबी तस्वीर खींचने की कोशिश कर रही है.
यह साल बारहवीं पंचवर्षीय योजना का आख़िरी साल था. पिछली सरकार ने इस साल 10 फ़ीसदी आर्थिक विकास दर हासिल करने का लक्ष्य रखा था. वह लक्ष्य तो दूर, पंचवर्षीय योजनाओं की कहानी का समापन भी इस साल हो गया.
अब भारतीय जनता पार्टी ने 'संकल्प से सिद्धि' कार्यक्रम बनाया है, जिससे एक नए किस्म की सांस्कृतिक पंचवर्षीय योजना का आग़ाज़ हुआ है.
नज़रिया: बीजेपी को क्यों लगता है कि जीत जाएगी 2019?
मोदी और शाह: ज़बानें दो, मक़सद एक

'संकल्प से सिद्धि' का रूपक है- 1942 की अगस्त क्रांति से लेकर 15 अगस्त 1947 तक स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच साल की अवधि का. रोचक बात यह है कि बीजेपी ने कांग्रेस से यह रूपक छीनकर उसे अपने सपने के रूप में जनता के सामने पेश कर दिया है. सन 2022 में भारतीय स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं और बीजेपी उसे भुनाना चाहती है.

पाँच साल लंबा सपना

मोदी सरकार ने ख़ूबसूरती के साथ देश की जनता को पाँच साल लंबा एक नया स्वप्न दिया है. पिछले साल के बजट में वित्तमंत्री ने 2022 तक भारत के किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प किया था. उस संकल्प से जुड़े कार्यक्रमों की घोषणा भी की गई है.

सवाल है कि क्या 2022 का स्वप्न 2019 की बाधा पार करने के लिए है या 'अच्छे दिन' नहीं ला पाने के कारण पैदा हुए असमंजस से बचने की कोशिश है? सवाल यह भी है कि क्या जनता उनके सपनों को देखकर मग्न होती रहेगी, उनसे कुछ पूछेगी नहीं?
मोदी सरकार देश के मध्य वर्ग और ख़ासतौर से नौजवानों के सपनों के सहारे जीतकर आई थी. उनमें आईटी क्रांति के नए 'टेकी' थे, अमेरिका में काम करने वाले एनआरआई और दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और मुम्बई के नए प्रोफ़ेशनल, काम-काजी लड़कियाँ और गृहणियाँ भी.
पिछले तीन साल में बीजेपी का हिंदू राष्ट्रवाद उभर कर सामने आया है. देखना होगा कि गाँवों और कस्बों के अपवार्ड मूविंग नौजवान को अब भी उनपर भरोसा है या नहीं.
मोदी कश्मीर मामले में वाजपेयी के रास्ते पर चलेंगे?

मोदी और अमित शाह से बड़े इवेंट मैनेजर नहीं हैं पीके
2019 को पार करने की रणनीति
जून 2014 में सोलहवीं लोकसभा के पहले अभिभाषण में राष्ट्रपति ने जिन नए कार्यक्रमों की घोषणा की थी उनमें देश में 100 विश्वस्तरीय स्मार्ट शहरों को स्थापित करने का कार्यक्रम भी था. यह कार्यक्रम भी 2022 में पूरा होगा. सरकार कहना चाहती है कि केवल पाँच साल काफ़ी नहीं होते.

डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया और बेटी बचाओ जैसे तमाम नए कार्यक्रम सरकार ने बनाए हैं. ये कार्यक्रम भविष्य के भारत के स्वप्न हैं. सवाल इस रणनीति को लेकर है. प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में सरकार की मौजूदा सफलताओं का विवरण दिया भी है, पर यह विवरण बहुत स्पष्ट नहीं हैं. यह भी साफ़ नहीं है कि इन्हें हासिल किस तरह किया जाएगा.

अर्थ-व्यवस्था का ठहराव

आर्थिक रूप से देश महत्वपूर्ण मोड़ पर है. हम सात फ़ीसदी के आसपास ठहरे हैं. नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र के कारोबार पर उल्टा असर पड़ा है और आर्थिक संवृद्धि प्रभावित हुई है.
इस साल जुलाई से सरकार ने टैक्स सुधार के रूप में जीएसटी को लागू किया है. इसके कारण भी कुछ समय तक आर्थिक संवृद्धि प्रभावित होगी. स्वदेशी पूँजी निवेश गति पकड़ नहीं पा रहा है. इसकी एक बड़ी वजह है बैंकों के प्रबंधन की बदहाली.

तकरीबन पूरा बैंकिग कारोबार देशी उद्यमियों को दिए गए कर्ज़ों की वक़्त से अदायगी नहीं हो पाने की वजह से बदहाल है. प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा जरूर है, पर वह इतना ज़्यादा नहीं है कि विकास दर तेज़ गति पकड़े.
विदेशी निवेशकों को आर्थिक सुधारों, श्रमिक कानूनों में बदलाव और देश के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का इंतज़ार है. विदेशी एजेंसियाँ भारत सरकार के बार-बार अनुरोध के बावजूद क्रेडिट रेटिंग सुधारने को तैयार नहीं है.

रोज़गार पैदा करने में विफलता

इन सब बातों से नए रोज़गार तैयार करने में तेज़ी नहीं आ पा रही है. उधर नई पीढ़ी सामने आती जा रही है. देश को तेज़ संवृद्धि के साथ संपदा के वितरण की जरूरत है. सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार हमारी सबसे बड़ी समस्याएं हैं.

सरकार को उस मोड़ का इंतज़ार है, जहाँ से वह 'अच्छे दिन' दिखा सके. यह सरकार भावनाओं की लहरों पर सवार होकर आई है और आज भी लहरों पर ही है. जमीन पर दिखाने लायक उपलब्धियाँ उसके पास अब भी नहीं हैं.

चमत्कारिक उपलब्धियाँ यूपीए सरकार की भी नहीं थीं. अलबत्ता साल 2004 से 2009 तक देश में आर्थिक विकास दर आठ से नौ फ़ीसदी तक पहुँच गई थी. 2008 की वैश्विक मंदी के बाद से उसमें भी गिरावट आई.
सच यह भी है कि यूपीए-2 के दौर में आर्थिक सुधारों का काम तकरीबन ठप हो गया था. यूपीए-1 को उसके पहले साल 1991 से 2004 के बीच हुए आर्थिक सुधारों का लाभ भी मिला था. मोदी सरकार को अपनी पूर्ववर्ती सरकार की सुस्ती का ख़ामियाजा भी भुगतना है.

क्या नरेंद्र मोदी केवल गुजरात के प्रधानमंत्री हैं?

सरकार को लेकर जो सर्वे आ रहे हैं, उनसे लगता है कि मोदी की लोकप्रियता बरकरार है. एक तबके को लगता है कि यह सरकार फ़ैसले करती है. इस तबके का भरोसा बनाए रखने के लिए भी ज़रूरी है कि सरकार 'ग़ुलाबी भविष्य' के सपने दिखाए.

Sources : BBC  News

Sunday, August 20, 2017

बीसवीं सदी में राजीव गांधी ने देखा था 21वीं सदी के भारत का सपना

कुछ लोग ज़मीन पर राज करते हैं और कु्छ लोग दिलों पर. मरहूम राजीव गांधी एक ऐसी शख़्सियत थे, जिन्होंने ज़मीन पर ही नहीं, बल्कि दिलों पर भी हुकूमत की। वह भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन हमारे दिलों में आज भी ज़िंदा हैं. राजीव गांधी ने उन्नीसवीं सदी में इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना देखा था. स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले श्री राजीव गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे. वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ ही उनका अन्य बड़ा मक़सद इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण है. अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल की, जिनमें संचार क्रांति और कंप्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल हैं. वे देश की कंप्यूटर क्रांति के जनक के रूप में भी जाने जाते हैं. वे युवाओं के लोकप्रिय नेता थे. उनका भाषण सुनने के लिए लोग घंटों इंतज़ार किया करते थे. उन्होंने अपने प्रधानमंत्री काल में कई ऐसे महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए, जिसका असर देश के विकास में देखने को मिल रहा है. आज हर हाथ में दिखने वाला मोबाइल उन्हीं फ़ैसलों का नतीजा है.
कम उम्र में बड़ी जिम्मेदारी
चालीस साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले श्री राजीव गांधी देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे और दुनिया के उन युवा राजनेताओं में से एक हैं, जिन्होंने सरकार की अगुवाई की है. उनकी मां श्रीमती इंदिरा गांधी 1966 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं, तब वह उनसे उम्र में आठ साल बड़ी थीं. उनके नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू 58 साल के थे, जब उन्होंने आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री के तौर शपथ ली. देश में पीढ़ीगत बदलाव के अग्रदूत श्री राजीव गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश हासिल हुआ था. अपनी मां के क़त्ल के बाद 31 अक्टूबर 1984 को वे कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री बने थे. अपनी मां की मौत के सदमे से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया. दुखी होने के बावजूद उन्होंने अपनी हर ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया. महीने भर की लंबी चुनावी मुहिम के दौरान उन्होंने पृथ्वी की परिधि के डेढ़ गुना के बराबर दूरी की यात्रा करते हुए देश के तक़रीबन सभी हिस्सों में जाकर 250 से ज़्यादा जनसभाएं कीं और लाखों लोगों से रूबरू हुए. उस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और पार्टी ने रिकॉर्ड 401 सीटें हासिल कीं. सात सौ करोड़ भारतीयों के नेता के तौर पर इस तरह की शानदार शुरुआत किसी भी हालत में क़ाबिले-तारीफ़ मानी जाती है. यह इसलिए भी बेहद ख़ास है, क्योंकि वे उस सियासी ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते थे, जिसकी चार पीढ़ियों ने जंगे-आज़ादी के दौरान और इसके बाद हिन्दुस्तान की ख़िदमत की थी. इसके बावजूद श्री राजीव गांधी सियासत में नहीं आना चाहते थे. इसीलिए वे सियासत में देर से आए.
राजनीतिक विरासत से मोह नहीं
श्री राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को मुंबई में हुआ था. वे सिर्फ़ तीन साल के थे, जब देश आज़ाद हुआ और उनके नाना आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. उनके माता-पिता लखनऊ से नई दिल्ली आकर बस गए. उनके पिता फ़िरोज़ गांधी सांसद बने, जिन्होंने एक निडर तथा मेहनती सांसद के रूप में ख्याति अर्जित की.
राजीव गांधी ने अपना बचपन अपने नाना के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया, जहां इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में काम किया. वे कुछ वक़्त के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए, लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया. वहां उनके कई दोस्त बने, जिनके साथ उनकी ताउम्र दोस्ती बनी रही. बाद में उनके छोटे भाई संजय गांधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया, जहां दोनों साथ रहे. स्कूल से निकलने के बाद श्री राजीव गांधी कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए, लेकिन जल्द ही वे वहां से हटकर लंदन के इम्पीरियल कॉलेज चले गए. उन्होंने वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
साधारण जिंदगी का सपना
उनके सहपाठियों के मुताबिक़ उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें न होकर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं. हालांकि संगीत में उनकी बहुत दिलचस्पी थी. उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय और आधुनिक संगीत पसंद था. उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी और रेडियो सुनने का भी ख़ासा शौक़ था. हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था. इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ़्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की और व्यावसायिक पायलट का लाइसेंस हासिल किया. इसके बाद वे 1968 में घरेलू राष्ट्रीय जहाज़ कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए. कैम्ब्रिज में उनकी मुलाक़ात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी, जो उस वक़्त वहां अंग्रेज़ी की पढ़ाई कर रही थीं. उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली. वे अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में इंदिरा गांधी के निवास पर रहे. वे ख़ुशी ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे.

दबाव में आये राजनीति में

23 जून 1980 को एक जहाज़ हादसे में उनके भाई संजय गांधी की मौत ने सारे हालात बदल कर रख दिए. उन पर सियासत में आकर अपनी मां की मदद करने का दबाव बन गया. फिर कई अंदरूनी और बाहरी चुनौतियां भी सामने आईं. पहले उन्होंने इन सबका काफ़ी विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें अपनी मां की बात माननी पड़ी और इस तरह वे न चाहते हुए भी सियासत में आ गए. उन्होंने जून 1981 में अपने भाई की मौत की वजह से ख़ाली हुए उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई. इसी महीने वे युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए. उन्हें नवंबर 1982 में भारत में हुए एशियाई खेलों से संबंधित महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बख़ूबी अंजाम दिया. साथ ही कांग्रेस के महासचिव के तौर पर उन्होंने उसी लगन से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित और सक्रिय किया.
दूरदर्शी नेता की दुखद मौत
अपने प्रधानमंत्री काल में राजीव गांधी ने नौकरशाही में सुधार लाने और देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए कारगर क़दम उठाए, लेकिन पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को नाकाम करने की उनकी कोशिश का बुरा असर हुआ. वे सियासत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते थे, लेकिन यह विडंबना है कि उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से ही सबसे ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ा. उन्होंने कई साहसिक क़दम उठाए, जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, पंजाब समझौता, मिज़ोरम समझौता आदि शामिल हैं. इसकी वजह से चरमपंथी उनके दुश्मन बन गए. नतीजतन, श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक़्त उन पर हमला किया गया, लेकिन वे बाल-बाल बच गए. साल 1989 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन वह कांग्रेस के नेता पद पर बने रहे. वे आगामी आम चुनाव के प्रचार के लिए 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर गए, जहां एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई. देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी.
राजीव गांधी की देश सेवा को राष्ट्र ने उनके दुनिया से विदा होने के बाद स्वीकार करते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया, जिसे श्रीमती सोनिया गांधी ने 6 जुलाई, 1991 को अपने पति की ओर से ग्रहण किया.
विपक्षी भी कायल
राजीव गांधी अपने विरोधियों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे. साल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, तो एक पत्रकार ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी से संपर्क किया. उन्होंने पत्रकार को अपने घर बुलाया और कहा कि अगर वह विपक्ष के नेता राजीव गांधी के ख़िलाफ़ कुछ सुनना चाहते हैं, तो वे एक भी शब्द राजीव गांधी के ख़िलाफ़ नहीं कहेंगे, क्योंकि राजीव गांधी की मदद की वजह से ही वह ज़िन्दा हैं. उन्होंने भावुक होकर कहा कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तो उन्हें पता नहीं कैसे पता चल गया कि मेरी किडनी में समस्या है और इलाज के लिए मुझे विदेश जाना है. उन्होंने मुझे अपने दफ़्तर में बुलाया और कहा कि वह उन्हें आपको संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और उम्मीद है कि इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर आप अपना इलाज करा लेंगे. मैं न्यूयॉर्क गया और आज इसी वजह से मैं जीवित हूं. फिर वाजपेयी बहुत भावविह्वल होकर बोले कि मैं विपक्ष का नेता हूं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि में विरोध में ही कुछ बोलूंगा. लेकिन ऐसा मैं नहीं कर सकता. मैं राजीव गांधी के बारे में वही कह सकता हूं, जो उन्होंने मेरे लिए किया. ग़ौरतलब है कि श्री राजीव गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी को इलाज के लिए कई बार विदेश भेजा था.

याद रहेंगे हमेशा
श्री राजीव गांधी की निर्मम हत्या के वक़्त सारा देश शोक में डूब गया था. श्री राजीव गांधी की मौत से श्री अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत दुख हुआ था. उन्होंने स्वर्गीय राजीव गांधी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, मृत्यु शरीर का धर्म है. जन्म के साथ मरण जुड़ा हुआ है. लेकिन जब मृत्यु सहज नहीं होती, स्वाभाविक नहीं होती, प्राकृतिक नहीं होती, ’जीर्णानि वस्त्रादि यथा विहाय’- गीता की इस कोटि में नहीं आती, जब मृत्यु बिना बादलों से बिजली की तरह गिरती है, भरी जवानी में किसी जीवन-पुष्प को चिता की राख में बदल देती है, जब मृत्यु एक साजिश का नतीजा होती है, एक षडतंत्र का परिणाम होती है तो समझ में नहीं आता कि मनुष्य किस तरह से धैर्य धारण करे, परिवार वाले किस तरह से उस वज्रपात को सहें. श्री राजीव गांधी की जघन्य हत्या हमारे राष्ट्रीय मर्म पर एक आघात है, भारतीय लोकतंत्र पर एक कलंक है. एक बार फिर हमारी महान सभ्यता और प्राचीन संस्कृति विश्व में उपहास का विषय बन गई है. शायद दुनिया में और कोई ऐसा देश नहीं होगा जो अहिंसा की इतनी बातें करता हो. लेकिन शायद कोई और देश दुनिया में नहीं होगा, जहां राजनेताओं की इस तरह से हिंसा में मृत्यु होती हो. यह हिंसा और हत्याओं का सिलसिला बंद होना चाहिए.

आज़ाद भारत स्वर्गीय राजीव महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा. स्वर्गीय राजीव गांधी की जयंती 'सद्भावना दिवस' और 'अक्षय ऊर्जा दिवस' के तौर पर मनाई जाती है, जबकि पुण्यतिथि 21 मई को ’बलिदान दिवस’ के रूप में मनाई जाती है.

(लेखक स्टार न्यूज़ एजेंसी के संपादक हैं)