Friday, September 15, 2017

पेट्रोल की कीमत को लेकर पीएम मोदी का ट्वीट हुआ वायरल

नई दिल्ली पेट्रोल की कीमत आसमान छू रही है, सोशल मीडिया पर सरकार की जमकर फजीहत हो रही है लेकिन बीजेपी अपने गुमान में मशगूल है। मुंबई में पेट्रोल की कीमत 80 रुपए प्रति लीटर पहुंच चुकी है। नई दिल्ली में भी पेट्रोल की कीमत रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। सोशल मीडिया पर इसको लेकर तमाम प्रतक्रियाएं आ रही है। #petrolpricehike ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है।

नरेंद्र मोदी ने किया था ट्वीट



ऐसे में पीएम मोदी का एक पुराना ट्वीट तेजी से वायरल हो रहा है जब वे देश के प्रधान सेवक के बजाए गुजरात के मुख्य सेवक हुआ करते थे। केंद्र में UPA-2 की सरकार थी। पेट्रोल की कीमत को लेकर नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था कि पेट्रोल की कीमत में बेतहासा वृद्धि UPA-2 सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है। पेट्रोल की इतनी ज्यादा कीमत से गुजरात की जनता पर सैकड़ों करोड़ों का बोझ पड़ेगा। मेगा स्टार अमिताभ बच्चन ने भी उस वक्त एक ट्वीट किया था।
कांग्रेस ने कहा आर्थिक आतंकवाद

वर्तमान की बात करें तो देश में डेली फ्यूल प्राइस रिवीजन की व्यवस्था लागू है। मतलब पेट्रोल और डीजल की कीमत इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमत के आधार पर तय होती है। कांग्रेस ने इस आर्थिक आतंकवाद करार दिया है। बता दें 26 मई 2014, मोदी के सत्तासीन होने के बाद से इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमत 52 फीसदी तक कम हो चुकी है। उस समय मुंबई में पेट्रोल की कीमत 71.41 रुपए थी जबकि आज की कीमत 79.48 पैसे हैं।

असफल योजनाओं की सफल सरकार, अबकी बार ईवेंट सरकार- रवीश कुमार

2022 में बुलेट ट्रेन के आगमन को लेकर आशावाद के संचार में बुराई नहीं है। नतीजा पता है फिर भी उम्मीद है तो यह अच्छी बात है। मोदी सरकार ने हमें अनगिनत ईवेंट दिए हैं। जब तक कोई ईवेंट याद आता है कि अरे हां, वो भी तो था,उसका क्या हुआ, तब तक नया ईवेंट आ जाता है। सवाल पूछकर निराश होने का मौका ही नहीं मिलता। जनता को आशा-आशा का खो-खो खेलने के लिए प्रेरित कर दिया जाता है। प्रेरना की तलाश में वो प्रेरित हो भी जाती है। होनी भी चाहिए। फिर भी ईमानदारी से देखेंगे कि जितने भी ईवेंट लांच हुए हैं, उनमें से ज़्यादातर फेल हुए हैं। बहुतों के पूरा होने का डेट 2019 की जगह 2022 कर दिया गया है। शायद किसी ज्योतिष ने बताया होगा कि 2022 कहने से शुभ होगा। ! काश कोई इन तमाम ईवेंट पर हुए खर्चे का हिसाब जोड़ देता। पता चलता कि इनके ईवेंटबाज़ी से ईवेंट कंपनियों का कारोबार कितना बढ़ा है।

ठीक है कि विपक्ष नहीं है, 2019 में मोदी ही जीतेंगे, शुभकामनाएं, इन दो बातों को छोड़ कर तमाम ईवेंट का हिसाब करेंगे तो लगेगा कि मोदी सरकार अनेक असफल योजनाओं की सफल सरकार है। इस लाइन को दो बार पढ़िये। एक बार में नहीं समझ आएगा।
2016-17 के रेल बजट में बड़ोदरा में भारत की पहली रेल यूनिवर्सिटी बनाने का प्रस्ताव था। उसके पहले दिसंबर 2015 में मनोज सिन्हा ने वड़ोदरा में रेल यूनिवर्सिटी का एलान किया था। अक्तूबर 2016 में खुद प्रधानमंत्री ने वड़ोदरा में रेल यूनिवर्सिटी का एलान किया। सुरेश प्रभु जैसे कथित रूप से काबिल मंत्री ने तीन साल रेल मंत्रालय चलाया लेकिन आप पता कर सकते हैं कि रेल यूनिवर्सिटी को लेकर कितनी प्रगति हुई है।
इसी तरह 2014 में देश भर से लोहा जमा किया गया कि सरदार पटेल की प्रतिमा बनेगी। सबसे ऊंची। 2014 से 17 आ गया। 17 भी बीत रहा है। लगता है इसे भी 2022 के खाते में शिफ्ट कर दिया गया है। इसके लिए तो बजट में कई सौ करोड़ का प्रस्ताव भी किया गया था।

2007 में गुजरात में गिफ्ट और केरल के कोच्ची में स्मार्ट सिटी की बुनियाद रखी गई। गुजरात के गिफ्ट को पूरा होने के लिए 70-80 हज़ार करोड़ का अनुमान बताया गया था। दस साल हो गए दोनों में से कोई तैयार नहीं हुआ। गिफ्ट में अभी तक करीब 2000 करोड़ ही ख़र्च हुए हैं। दस साल में इतना तो बाकी पूरा होने में बीस साल लग जाएगा।
अब स्मार्ट सिटी का मतलब बदल दिया गया है. इसे डस्टबिन लगाने, बिजली का खंभा लगाने, वाई फाई लगाने तक सीमित कर दिया गया। जिन शहरों को लाखों करोड़ों से स्मार्ट होना था वो तो हुए नहीं, अब सौ दो सौ करोड़ से स्मार्ट होंगे। गंगा नहीं नहा सके तो जल ही छिड़क लीजिए जजमान।

गिफ्ट सिटी की बुनियाद रखते हुए बताया जाता था कि दस लाख रोज़गार का सृजन होगा मगर कितना हुआ, किसी को पता नहीं। कुछ भी बोल दो। गिफ्ट सिटी तब एक बडा ईवेंट था, अब ये ईंवेट कबाड़ में बदल चुका है। एक दो टावर बने हैं। जिसमें एक अंतर्राष्ट्रीय स्टाक एक्सचेंज का उदघाटन हुआ है। आप कोई भी बिजनेस चैनल खोलकर देख लीजिए कि इस एक्सचेंज का कोई नाम भी लेता है या नहीं। कोई 20-25 फाइनेंस कंपनियों ने अपना दफ्तर खोला है जिसे दो ढाई सौ लोग काम करते होंगे। हीरानंदानी के बनाए टावर में अधिकांश दफ्तर ख़ाली हैं।
लाल किले से सांसद आदर्श ग्राम योजना का एलान हुआ था। चंद अपवाद की गुज़ाइश छोड़ दें तो इस योजना की धज्जियां उड़ चुकी हैं। आदर्श ग्राम को लेकर बातें बड़ी बड़ी हुईं, आशा का संचार हुआ मगर कोई ग्राम आदर्श नहीं बना। लाल किले की घोषणा का भी कोई मोल नहीं रहा।

जयापुर और नागेपुर को प्रधानमंत्री ने आदर्श ग्राम के रूप में चुना है। यहां पर प्लास्टिक के शौचालय लगाए गए। क्यों लगाए गए? जब सारे देश में ईंट के शौचालय बन रहे हैं तो प्रदूषण का कारक प्लास्टिक के शौचालय क्यों लगाए गए? क्या इसके पीछ कोई खेल रहा होगा?

बनारस में क्योटो के नाम पर हेरिटेज पोल लगाया जा रहा है। ये हेरिटेज पोल क्या होता है। नक्काशीदार महंगे बिजली के पोल हेरिटेज पोल हो गए? ई नौका को कितने ज़ोर शोर से लांच किया गया था। अब बंद हो चुका है। वो भी एक ईवेंट था, आशा का संचार हुआ था। शिंजो आबे जब बनारस आए थे तब शहर के कई जगहों पर प्लास्टिक के शौचालय रख दिए गए। मल मूत्र की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं हुई। जब सड़ांध फैली तो नगर निगम ने प्लास्टिक के शौचालय उठाकर डंप कर दिया।

जिस साल स्वच्छता अभियान लांच हुआ था तब कई जगहों पर स्वच्छता के नवरत्न उग आए। सब नवर्तन चुनते थे। बनारस में ही स्वच्छता के नवरत्न चुने गए। क्या आप जानते हैं कि ये नवरत्न आज कल स्वच्छता को लेकर क्या कर रहे हैं।

बनारस में जिसे देखिए कोरपोरेट सोशल रेस्पांसबिलिटी का बजट लेकर चला आता है और अपनी मर्ज़ी का कुछ कर जाता है जो दिखे और लगे कि विकास है। घाट पर पत्थर की बेंच बना दी गई जबकि लकड़ी की चौकी रखे जाने की प्रथा है। बाढ़ के समय ये चौकियां हटा ली जाती थीं। पत्थर की बेंच ने घाट की सीढ़ियों का चेहरा बदल दिया है। सफेद रौशनी की फ्लड लाइट लगी तो लोगों ने विरोध किया। अब जाकर उस पर पीली पन्नी जैसी कोई चीज़ लगा दी गई है ताकि पीली रौशनी में घाट सुंदर दिखे।
प्रधानमंत्री के कारण बनारस को बहुत कुछ मिला भी है। बनारस के कई मोहल्लों में बिजली के तार ज़मीन के भीतर बिछा दिए गए हैं। सेना की ज़मीन लेकर पुलवरिया का रास्ता चौड़ा हो रहा है जिससे शहर को लाभ होगा। टाटा मेमोरियल यहां कैंसर अस्पताल बना रहा है। रिंग रोड बन रहा है। लालपुर में एक ट्रेड सेंटर भी है।

क्या आपको जल मार्ग विकास प्रोजेक्ट याद है? आप जुलाई 2014 के अख़बार उठाकर देखिए, जब मोदी सरकार ने अपने पहले बजट में जलमार्ग के लिए 4200 करोड़ का प्रावधान किया था तब इसे लेकर अखबारों में किस किस तरह के सब्ज़बाग़ दिखाए गए थे। रेलवे और सड़क की तुलना में माल ढुलाई की लागत 21 से 42 प्रतिशत कम हो जाएगा। हंसी नहीं आती आपको ऐसे आंकड़ों पर।

जल मार्ग विकास को लेकर गूगल सर्च में दो प्रेस रीलीज़ मिली है। एक 10 जून 2016 को पीआईबी ने जारी की है और एक 16 मार्च 2017 को। 10 जून 2016 की प्रेस रीलीज़ में कहा गया है कि पहले चरण में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया के बीच विकास चल रहा है। 16 मार्च 2017 की प्रेस रीलीज़ में कहा गया है कि वाराणसी से हल्दिया के बीच जलमार्ग बन रहा है। इलाहाबाद कब और कैसे ग़ायब हो गया, पता नहीं।

2016 की प्रेस रीलीज़ में लिखा है कि इलाहाबाद से वाराणसी के बीच यात्रियों के ले जाने की सेवा चलेगी ताकि इन शहरों में जाम की समस्या कम हो। इसके लिए 100 करोड़ के निवेश की सूचना दी गई है। न किसी को बनारस में पता है और न इलाहाबाद में कि दोनों शहरों के बीच 100 करोड़ के निवेश से क्या हुआ है।

यही नहीं 10 जून 2016 की प्रेस रीलीज़ में पटना से वाराणसी के बीच क्रूज़ सेवा शुरू होने का ज़िक्र है। क्या किसी ने इस साल पटना से वाराणसी के बीच क्रूज़ चलते देखा है? एक बार क्रूज़ आया था, फिर? वैसे बिना किसी प्रचार के कोलकाता में क्रूज़ सेवा है। काफी महंगा है।

जुलाई 2014 के बजट में 4200 करोड़ का प्रावधान है। कोई नतीजा नज़र आता है? वाराणसी के रामनगर में टर्मिनल बन रहा है। 16 मार्च 2017 की प्रेस रीलीज़ में कहा गया है कि इस योजना पर 5369 करोड़ ख़र्च होगा और छह साल में योजना पूरी होगी। 2014 से छह साल या मार्च 2017 से छह साल?
प्रेस रीलीज़ में कहा गया है कि राष्ट्रीय जलमार्ग की परिकल्पना 1986 में की गई थी। इस पर मार्च 2016 तक 1871 करोड़ खर्च हो चुके हैं। अब यह साफ नहीं कि 1986 से मार्च 2016 तक या जुलाई 2014 से मार्च 2016 के बीच 1871 करोड़ ख़र्च हुए हैं। जल परिवहन राज्य मंत्री ने लोकसभा में लिखित रूप में यह जवाब दिया था।

नमामि गंगे को लेकर कितने ईवेंट रचे गए। गंगा साफ ही नहीं हुई। मंत्री बदल कर नए आ गए हैं। इस पर क्या लिखा जाए। आपको भी पता है कि एन जी टी ने नमामि गंगे के बारे में क्या क्या कहा है। 13 जुलाई 2017 के इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि दो साल में गंगा की सफाई पर 7000 करोड़ ख़र्च हो गए और गंगा साफ नहीं हुई। ये 7000 करोड़ कहां ख़र्च हुए? कोई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा था क्या? या सारा पैसा जागरूकता अभियान में ही फूंक दिया गया? आप उस आर्डर को पढ़ंगें तो शर्म आएगी। गंगा से भी कोई छल कर सकता है?

इसलिए ये ईवेंट सरकार है। आपको ईवेंट चाहिए ईवेंट मिलेगा। किसी भी चीज़ को मेक इन इंडिया से जोड़ देने का फन सबमें आ गया जबकि मेक इन इंडिया के बाद भी मैन्यूफैक्चरिंग का अब तक का सबसे रिकार्ड ख़राब है।

नोट: इस पोस्ट को पढ़ते ही आई टी सेल वालों की शिफ्ट शुरू हो जाएगी। वे इनमें से किसी का जवाब नहीं देंगे। कहेंगे कि आप उस पर इस पर क्यों नहीं लिखते हैं। टाइप किए हुए मेसेज अलग अलग नामों से पोस्ट किए जाएंगे। फिर इनका सरगना मेरा किसी लिखे या बोले को तोड़मरोड़ कर ट्वीट करेगा। उनके पास सत्ता है, मैं निहत्था हूं। दारोगा, आयकर विभाग, सीबीआई भी है। फिर भी कोई मिले तो कह देना कि छेनू आया था।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं। ये लेख उनके फेसबुक पोस्ट से लिया गया है।)

Wednesday, September 13, 2017

अमेरिका में भाषण देकर छा गए राहुल गांधी || अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का संबोधन

अमेरिका में भाषण देकर छा गए राहुल गांधी, लोग बोले- बौखलाहट है तभी BJP ने प्रवक्ताओं और मंत्रियों की फौज उतार दी है

अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का संबोधन चर्चा का विषय बन गया है। हिंसा औऱ नफरत पर राहुल गाँधी का वार काफी सवाल खड़े कर रहा है। मोदी सरकार की जिम्मेदारी अब ज्यादा बढ़ गई है।

कश्मीर मुद्दे पर सरकार की नाकामी को कांग्रेस उपाध्यक्ष ने यूनिवर्सिटी के संबोधन में उठाया। हिंसा और नफरत ज्यादा जोर दिया गया। राहुल गाँधी ने पत्रकारों, अल्पसंख्यकों औऱ दलितों पर हो अत्याचार की ओर इशारा किया। उन्होंने इसे नफरत औऱ हिंसा से जोड़ा।

राहुल गाँधी ने नफरत और हिंसा की भेंट चढ़े पिता राजीव गाँधी औऱ दादी इंदिरा गाँधी का भी जिक्र किया। उन्होंने यह जिक्र इसलिए किया क्योंकि जब किसी का कोई नफरत औऱ हिंसा में मरता है तो बहुत दर्द होता है। उसको खोने का दर्द काफी असहनीय होता है।

राहुल गाँधी के संबोधन पर भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार काफी परेशान दिख रही है। प्रवक्ताओं से लेकर मंत्रियों की फौज लगा दी गई है। भाजपा इसे भारत का अपमान बता रही है। जबकि खुद प्रधानमंत्री ऐसा कर चुके हैं। सोशल मीडिया पर लोग इसे बीजेपी की बौखलाहट बता रहे हैं।

स्मृति ईरानी से लेकर संबित्र पात्रा के बयानों को लोग इसी से जोड़कर देख रहे हैँ, वरिष्ठ पत्रकार अंबरीष कुमार ने लिखा कि, राहुल गाँधी चुनौती बन रहे हैं क्या ? कई मंत्री और प्रवक्ता आज उनपर जुटे हुए हैं इसके अलावा भी तमाम लोग लगातार लिख रहे हैँ।
आपको बता दें कि, राहुल गाँधी के संबोधन के बाद बीजेपी के प्रवक्ता औऱ मंत्री प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

Tuesday, September 12, 2017

मोबाइल सिम और आधार लिंक नहीं कराने वालों को मिली राहत!.

अगर आपने अभी तक अपने आधार और
मोबाइल सिम को लिंक नहीं किया है तो घबराएं नहीं, आपका मोबाइल नंबर बंद नहीं किया जाएगा. दरअसल इस मामले पर आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सफाई देते हुए कहा है कि किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई भी संस्था या फिर टेलीकॉम कंपनी आपका नंबर बंद नहीं कर सकती है.

एक्सक्लूसिव बातचीत में दी अहम जानकारी

सीएनबीसी-आवाज़ से एक्सक्लूसिव बातचीत में रवि शंकर प्रसाद ने बताया कि मोबाइल सिम को आधार के साथ लिंक नहीं कराने के बावजूद फरवरी 2018 के बाद भी आपका मोबाइल सिम कार्ड काम करता रहेगा.

आधार को PAN कार्ड के साथ लिंक करना इसलिए जरुरी

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आधार और पैन को लिंक करने का फैसला मनी लॉन्डरिंग रोकने के लिए गया था और बैंक अकाउंट खोलने के लिए अधार जरूरी है लेकिन उसमें कुछ प्रावधान तय किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मनरेगा पेमेंट और राशन कार्ड के लिए आधार को लिंक करना जरूरी किया गया है.

Sunday, September 3, 2017

मोदी सरकार को मंत्रिमंडल ही नहीं, मीडिया में भी फेरबदल की ज़रूरत है :.

कैबिनेट का विस्तार पत्रकारों के लिए सूत्रों के हाथों खेलने का सावन होता है। दिल्ली शहर में सूत्रों के तरह तरह के बादल घुमड़ते रहते हैं और उनके नीचे हमारे पत्रकार भीगते रहते हैं। कुछ बातें सही होती हैं और कुछ बातें ग़लत होती हैं। कोई भी कैबिनेट विस्तार तीन चार दिनों की अटकलबाज़ी के बग़ैर नहीं होता है। इसी समय पता चलता है कि मोदी सरकार के भीतर कुछ सूत्र भी हैं। बाकी ख़बरें तो विज्ञापन और प्रेस रीलिज़ से मिल ही जाती हैं। सूत्रों के आधार पर मंत्रियों के आने-जाने की ख़बर बांचने वाले इन पत्रकारों को कभी ऐसे सूत्र नहीं मिलते हैं जो सरकार के भीतर चलने वाले खेल को बाहर ला सकें। कैबिनेट विस्तार समाप्त होते ही ये सूत्र शिमला घूमने चले जाएंगे। इसके बाद राजनीतिक संपादक कद के पत्रकरार ट्वीटर पर सरकार के बचाव में लग जाएंगे और कभी कभी गोरखपुर कांड जैसी ख़बरों पर आलोचना कर पत्रकार होने का लाइसेंस नया कर लेंगे। यही होता आया है। यही हो रहा है। यही होता रहेगा।

कैबिनेट विस्तार के कई आधार होते हैं। सबसे बड़ा आधार होता है महानतम घोषित हो चुके नेता को फिर से महान बताना। उनकी जयजयकार करना कि कैसे उनकी हर बात पर नज़र है। वे काम में कोताही बर्दाश्त नहीं करते हैं। सचिवों के साथ लगातार समीक्षा बैठक करते हैं। ऐसे वैसे मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होता है। पहले एक्सेल शीट बनी है, उस पर सबके प्रदर्शन का चार्ट लिखा है, उसमें जिसके अंक कम होंगे, वही हटाए जा रहे हैं। राजनीति में कारपोरेट के टोटके बड़ी आसानी से चल जाते हैं। अब उस एक्सेल शीट को किसने देखा है, सूत्र ने या पत्रकारों ने? बोगस ख़बरें चल रही हैं कि खुफिया एजेंसियों ने एक मंत्री को भ्रष्टाचार करते हुए पकड़ा है, उन्हें हटाया जा रहा है। यह ख़बर किसके पास है कि भ्रष्टाचार में लिप्त उस मंत्री के ख़िलाफ एफ आई आर होगी, संपत्ति ज़ब्त होगी? कब पता चला कि ख़ुफिया एजेंसी ने मंत्री का करप्शन पकड़ लिया है, रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट से पोल खुलने के बाद या पहले ? जब पता चला तो प्रधानमंत्री ने क्या किया, सीबीआई से जांच कराई ,या ज्योतिष से मंत्रिमंडल बदलाव की तारीख पूछने लगे?

ज सिंह की कई तस्वीरें आ गईं सृजन घोटाले की प्रमुख पात्रा मनोरमा देवी के साथ, क्या उनके बारे में खुफिया एजेंसियों को कोई जानकारी है। और यह कैसी सरकार है कि मंत्रियों के पीछे ख़ुफिया एजेंसियां लगी हैं, क्या प्रधानमंत्री को अपने मंत्रियों पर भरोसा नहीं हैं? किस्से पर किस्सा चल रहा है। राधा मोहन सिंह कृषि मंत्रालय से हटाए जाएंगे, वे फेल हुए हैं या मोदी जी फेल हुए हैं? 2022 तक आमदनी दुगनी करने का झांसा देने वाला आइडिया किसने दिया था, राधा मोहन ने या मोदी जी ने? वादा किया था कि दुगना दाम देंगे, दिया ? ये क्या राधा मोहन सिंह ने अपनी मर्ज़ी से नहीं दिया या सरकार को देना ही नहीं था?

मोदी सरकार मंत्रिमंडल विस्तार डायमंड कोमिक्स का नया अंक लगता है। जिसके नए अंक में बताया जा रहा है कि मोदी जी सांसदों को मंत्री बनाकर अपने वॉर रूम में चले गए थे। वहां से चुपचाप देख रहे थे कि कौन मंत्री काम कर रहा है, कौन नहीं। बिग बॉस की तरह कभी कभी आकाशवाणी के ज़रिए चेतावनी दे दिया करते थे। मशहूर अमरीकी सीरीयल स्टार ट्रेक के कैप्टन कर्क लगते हैं अपने प्रधानमंत्री। ऐसा लगता है कि यह सरकार नहीं है, USS ENTERPRISE नाम का अंतरीक्षयान है। जो भी एलियन से लड़ने में फेल होगा, कैप्टन कर्क उसे हटा देंगे।
कोई नहीं बता रहा है कि ये एक्सेल शीट क्या अगस्त में ही तैयार हुई है या पहले से बनती चली आ रही थी? क्या उस एक्सेल शीट में उनका भी नाम दिखा, जिनकी वजह से जीडीपी 5.7 प्रतिशत पर आ गई, नोटबंदी फेल हो गई, नौकरियां कम हो गईं, मेक इन इंडिया फेल हो गया, मैन्यूफैक्चरिंग का ग्रोथ रेट एक साल में 10 प्रतिशत से घटकर 2.4 प्रतिशत पर आ गया? क्या कैप्टन कर्क इन सब एलियन पर भी नज़र गड़ाए हुए हैं? पत्रकार मोदी जी की तारफी में उनका बड़ा नुकसान कर देते हैं। अभी बवाना उपचुनाव हो रहे थे तो ख़बर आई कि प्रधानमंत्री बवाना पर नज़र बनाए हुए हैं।

मैं अभी तक हैरान हूं कि वे कैसे नज़र बनाए हुए हैं, अपने अंतरिक्ष यान से बवाना देख रहे हैं या वहीं भेष बदलकर रातों को घूमते हैं। कई बार पत्रकारों के विश्लेषण से लगता है कि मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं हैं। शहंशाह फिल्म के किरदार हैं। अंधेरी रातों में, सुनसान राहों पर, एक मसीहा निकलाता है…उसे लोग शहंशाह कहते हैं।

मेरी एक सिफारिश है मोदी जी से कि वे ऐसे पत्रकारों और एंकरों से किनारा कर लें। वैसे भी प्रोपेगैंडा का एक सिद्धांत है। जिसका काम हो जाए उसे चलता कर देना चाहिए। उसी काम को करने के लिए नए चेहरे लाए जाते हैं। कई बार जनता इन एंकरों के कारण सरकार से ज़्यादा चिढ़ जाती है। वैसे तो उनकी जीत अब यदा यदा ही नहीं सदा सदा के लिए तय है, फिर भी हार का कोई कारण बन जाए, उसे हटाने में कोई बुराई नहीं है। सरकार को चाहिए कि मीडिया को गोदी मीडिया में बदलने के बाद उसकी बेवकूफियों पर भी कंट्रोल करे। मोदी सरकार को मंत्रिमंडल ही नहीं, मीडिया में भी फेरबदल की ज़रूरत है। खुशामद की परंपरा कोई नहीं बदल सकता, नए चेहरे हों तो इरशाद में दम आ जाता है।

कैबिनेट विस्तार की रोचक कथाओं का कमाल देखिए। जिन विश्लेषणों में एक मंत्री ख़राब प्रदर्शन के कारण हटाया जा रहा है, उन्हीं विश्लेषणों में कोई सिर्फ इसलिए मंत्री बन रहा है कि उसके राज्य में चुनाव है। चुनाव सापेक्षिक उपयोगिता का सिद्धांत अजर-अमर है। जब भी मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार की ख़बरें चलती हैं, टीवी स्क्रीन पर अरुण जेटली का चेहरा खूब फ्लैश करता है। क्या रक्षा मंत्री रहेंगे, क्या वित्त मंत्री रहेंगे? मीडिया अपनी तरफ से दोनों में से एक मंत्रालय से जेटली जी को हटाता रहता है और उसमें किसी न किसी को फिट करता रहता है। इतनी ही दिक्कत है तो कभी अलग से इसी पर चर्चा करने की हिम्मत क्यों नहीं है कि इस देश में कोई फुल टाइम रक्षा मंत्री नहीं है। मगर इस सवाल को वो विस्तार की खबरों के बहाने निपटा देता है।

उसी तरह एक और मंत्रालय है मानव संसाधन। समझ नहीं आता कि इस मंत्रालय में आकर मंत्री फेल हो जाते हैं या मंत्री आकर इस मंत्रालय को फेल कर देते हैं। मंत्री से ज़्यादा तो दीनानाथ बत्रा सुर्ख़िया बटोर ले जाते हैं। आख़िर जब वे इतने क़ाबिल हैं तो दीनानाथ बत्रा को मानव संसाधन मंत्री बना देने में क्या दिक्कत है। खुदरा खुदरा बदलाव से अच्छा है, एक ही बार में कबाड़ में बदल देने में कोई दिक्कत नहीं है। वैसे भी उनके पहले से ये शिक्षा व्यवस्था कबाड़ में बदल चुकी है। पूर्ववर्ती सरकारों ने कोई बहुत भला नहीं किया है। जब सबको आकर प्राइवेट दुकान ही खोलनी है और एक्सलेंस के नाम पर सरकारी यूनिवर्सिटी में चाटुकार वीसी ही नियुक्त करने हैं तो यह काम बत्रा जी से बेहतर कौन कर सकता है। आख़िर उनकी बहुमुखी प्रतिभा को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है। जब वही बाहर से कोर्स बदलवा रहे हैं तो उन्हें भीतर क्यों नहीं मौका मिलना चाहिए।

अभी तक हमें नहीं पता कि इस सरकार ने मेरी प्रिय भाषा संस्कृत के विकास के लिए क्या किया है? कोई ठोस कदम उठाया है? न्यूज़ बुलेटिन और शपथ लेने से संस्कृत का विकास नहीं होने वाला है। वैसे दूरदर्शन पर संस्कृत का कार्यक्रम बहुत अच्छा है। क्या संस्कृत के संरक्षण के लिए कोई नई यूनिवर्सिटी बनी है, पुराने जर्जर हो चुके संस्कृत कालेजों में नियुक्तियां ही हो चुके संस्कृत कालेजों की मरम्मत के लिए कितना फंड गया है? संस्कृत से पास करने वाले कितने युवाओं को सरकारी नौकरी मिली है? ये सारे सवाल आसानी से गायब कर दिए गए हैं या एक्सेल शीट में नहीं आते हैं। 2015 में मेल आनलाइन के लिए आदित्य घोष ने एक ख़बर लिखी है। जर्मनी की मशहूर हाइडलबर्ग यूनिवर्सटी वहां संस्कृत सीखने के लिए दक्षिण एशिया से इतने आवेदन आ गए कि संभाल नहीं सकी। हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी ने फैसला किया कि वह स्वीटज़रलैंड और भारत में भी सेंटर खोलेगी। माननीय भारत सरकार आप अपना रिकार्ड बताइये तो। लगे हाथ ये भी बता दीजिए कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कितने पद ख़ाली हैं और आप कब भरने वाले हैं।

कैबिनेट विस्तार की ख़बरों में प्रदर्शन के नाम पर कुछ मंत्रियों का बायेडेटा ख़राब हो रहा है। बेचारे राजीव प्रताप रूडी की शक्ल मीडिया में ऐसे दिखाई जा रही है जैसे यही सबसे नकारे हों। इसके पहले इसी रूडी का हंसता खिलखिलाता चेहरा मीडिया के लिए मोदी सरकार की नौजवानी का चेहरा हुआ करता था। अब रूडी का उदास चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगा, इसलिए नहीं कि मुझे उनसे सहानुभूति है। काश वे खुल कर बोल देते कि स्किल इंडिया क्यों फेल हुआ? वे फैसला लेते थे या कोई और फ़ैसला लेता था? स्किल इंडिया फेल हो गया है या रूडी फेल हुए हैं? किसी में न तो यह बताने की हिम्मत है न ही जानकारी क्योंकि सूत्र ये सब जानने नहीं देते हैं। कोई तो बताए कि योजना लागू होती है या सिर्फ विज्ञापन लागू होता है।

मोदी सरकार प्रेस रीलिज और विज्ञापन की सरकार है।
सरकार के भीतर के अंतर्विरोधों की रिपोर्टिंग बंद हो गई है। सांसद सिर्फ कठपुतली नहीं होता है। जो असली नेता होता है वो एक स्वायत्त स्वभाव का भी होता है। इंडियन एक्सप्रेस में बीजेपी के ही सांसद नाना पटोले का बयान छपा है। नाना पटोने कहा कि प्रधानमंत्री को सवाल पूछना अच्छा नहीं लगता है। जब उन्होंने कुछ मुद्दे उठाए तो प्रधानमंत्री नाराज़ हो गए। मोदी जी से सवाल पूछो तो कहते हैं कि आपने पार्टी का मेनिफेस्टो पढ़ा है, क्या आप सरकार की योजनाओं के बारे में जानते हैं? मोदी जी गुस्सा गए और चुप रहने के लिए कह दिया। सारे केंद्रीय मंत्री हमेशा डर के माहौल में रहते हैं। मैं मंत्री नहीं बनना चाहता। मुझे किसी से डर नहीं लगता है।
ये एक सांसद का बयान है। इसे बग़ावत समझ कर मत समेटिए। न ही मज़ा लेने की कोई बात है। सासंद पटोले ने वही कहा जो रूडी नहीं कह सकते हैं, जो उमा भारती नहीं कह सकती हैं। वो जानती हैं कि योजनाएं क्यों फेल हुई हैं मगर उन्हें यह नकारे होने का ज़हर पीना पड़ेगा। वे भी तो चुप थे जब आडवाणी की ऐसी हालत की जा रही थी, अब जब उनकी हालत ऐसी की जाएगी तो चुप तो रहना ही होगा। जो दूसरों के लिए नहीं बोल पाता, वो अपने लिए भी नहीं बोल पाता है।
सांसद पटोले का बयान नया है मगर आप पुरानी ख़बरों को पलट कर देखिए, सांसदो को टास्क दिए जा रहे हैं कि कितने ट्वीट करने हैं, कितने री-ट्वीट करने हैं, कितना शेयर करना है। लगातार सांसद की भूमिका समाप्त की जा रही है। उसका काम है चुनाव मैनेज करना। सांसदों को भी तय करना होगा कि वे सांसद बनने के लिए सांसद बने हैं या जयजयकार करने के लिए। ये हाल सिर्फ बीजेपी का नहीं है, हर दल के सांसदों का यही हाल है।

मंत्रिमंडल के विस्तार को दंत कथाओं में मत बदलिए। ये सिर्फ राजनीतिक जुगाड़ का विस्तार है। मंत्री फेल नहीं हुए हैं, सरकार फेल हुए है, वो आइडिया फेल हुआ है जिसमें ज़बरन हवा भरी जा रही थी। यह जब कह नहीं सकते तो बेकार में क्यों दो चार मंत्रियों को बदनाम करना है कि देखो यही नकारे हैं। घास फूस की छंटाई हो गई और काबिलों की सरकार बन गई है। इसलिए ज़्यादा महिमामंडन मत कीजिए। न ही कोल्हू से तेल निकालिए। ये सबहोता रहता है,चलता रहता है, कोई बड़ी बात नहीं है।