Saturday, December 8, 2018

UP Police Result को लेकर बहुत बड़ा Scam

उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती 2018  को लेकर कई Candidates बार-बार शिकायत कर रहे हैं कि हमारा Results क्यों नहीं दिखाया जा रहा है
जिसको लेकर लोगों ने  बहुत बड़ी धांधली की आशंका जताई है

Tuesday, November 27, 2018

एक SMS से भी आसानी से हैक किया जा सकता है आपका स्मार्टफोन

एक SMS से भी आसानी से हैक किया जा सकता है आपका स्मार्टफोन, ऐसे रहें सावधान

आज के समय में हर एक व्यक्ति एंड्रॉयड स्मार्टफोन इस्तेमाल करते है, इसके साथ ही कई हैकर्स ऐसी तकनीक निकाली से जिससे आसानी से फोन्स को हैक किया जा सकता है। वहीं यूजर्स को भी सावधान रहना चाहिए, क्योंकि एक मैसेज की मदद से एंड्रॉयड स्मार्टफोन को हैक किया जा सकता है। आज हम आपको इस मैसेज की जानकारी देंगे, जिससे अगर आपके पास भी आपके पास मैसेज आए तो आप अपना फोन हैक होने से बचा पाएंगे। आइए जानते है इसके बारे में...

एक रिपोर्ट के अनुसार, 95 प्रतिशत स्मार्टफोन्स को एक मैसेज के जरिए हैक किया जा सकता है। उन स्मार्टफोन्स को हैक किया जा सकता है, जिनका वर्जन 2.2 या 5.1 है। इसके साथ ही गूगल ने अपना नया एंड्रोइड वर्जन 9.0 पाई पेश किया था। रिसर्च के अनुसार, 5.1 तक के एंड्रॉयड वर्जन में एक कमी है, जिसका लाभ उठाकर हैकर्स किसी भी फोन को हैक कर सकते है। इसकी खास बात यह है कि एंड्रॉयड 5.1 पर काम करने वाले टैबलेट को भी हैक किया जा सकता है। एंड्रॉयड फोन में एक सॉफ्टवेयर है, जिसका नाम #Stagefright है और इसी की मदद से मल्टीमीडिया फाइल को खोला जा सकता है। लेकिन इस सॉफ्टवेयर की मदद से एमएमएस यानि मल्टीमिडिया मैसेज से भी हैक किया जा सकता है। अगर #हैकर्स के पास यूजर का नंबर है, तो एमएमएस भेजकर भी वह फोन को हैक कर सकता है। भुलकर भी किसी भी अंजान नंबर के एमएमएस को ओपन नहीं करना चाहिए, वरना फोन हैक हो सकता है।

Saturday, September 8, 2018

क्या विकास वाक़ई लापता हो गया है।

क्या विकास वाक़ई लापता हो गया है। विकास की गुमशुदगी के सवालों के बीच सरकार के दावों में कोई कमी नहीं आ रही है। क्या वाक़ई अर्थव्यवस्था तेज़ी सै बढ़ रही है? जी हां, जीडीपी तो बढ़ रही है। इसमें कोई शक नहीं है। सरकार के दावे भी सही हैं भले ही आंकड़ों की बाज़गरी कहिए। बस सरकार अपने दावे में जो एक बात छिपा रही है वो है विकास का केंद्रीयकरण। यानि विकास तो हो रहा है। इंडस्ट्रीयल ऑउटपुट भी बढ़ा है और निर्यात भी। लेकिन पिछले चार साल में इसका लाभ नहीं दिखा है तो इसकी वजह अर्थव्यवस्था का केंद्रीयकरण ही है।
इसे आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं। दरअसल इस चार साल के दौरान सरकार का सारा ज़ोर असंगठित क्षेत्र को ख़त्म कर उसके बदले में संगठित क्षेत्र को बढ़ावा देने पर रहा है। नोटबंदी, उलझी हुई जीएसटी और ई-वे बिल लागू करने के पीछे मंशा भी यही थी। भारत में व्यापार और कारोबार का अमेरिकी या इज़रायली माॅडल लागू करना सरकार की प्राथमिकता रही है। विश्व बैंक और आईएमएफ भी इसको प्रोत्साहित करता है। इसके तहत बहुत सारे छोटे निर्माताओं और कारोबारियों को बाज़ार से हटाकर कुछ बड़े समूहों के लिए प्रतिस्पर्धा रहित माहौल पैदा करना होता है। इससे सरकार का टैक्स संग्रहण पर होने वाला ख़र्च बेहद कम हो जाता है। बाज़ार में कम कारोबारी होने से उनपर नज़र रखना आसान होता है। इससे टैक्स चोरी में भी कमी आती है। राजनीतिक तौर पर फायदा ये है कि एकमुश्त बहुत सारा चंदा एक ही जगह से मिल जाता है।
इस माॅडल में बड़ा कारोबारी सबसे ज़्यादा फायदे में रहता है। एक तो बाज़ार से चुनौती देने वाले और सस्ते विकल्प ग़ायब हो जाते हैं। दूसरे कारोबार चौपट होने के बाद ट्रेंड लोग सस्ती लेबर में तब्दील हो जाते हैं। अमेरिका या इज़रायल में छोटे कारोबारी या व्यक्तिगत उद्यम बेहद कम हैं। वहां अपनी दुकान खोलने या कारोबार में इतनी क़ानूनी दिक़्क़त हैं कि लोग किसी मल्टीनेशनल कंपनी के स्टोर में नौकरी करना पसंद करते हैं। इसके चलते वहां संगठित रिटेल चेन और बहुराष्ट्रीय उत्पादक पनपते जाते हैं।

यही वजह है कि वाॅलमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिन देशों में कारोबार करने जाती हैं वहां लाबिइंग करके पहले मन-माफिक़ कानून बनवाती है। फिर असंगठित क्षेत्र को निशाना बनाती है। इसके बाद सस्ते सामान से बाज़ार पाट देती हैं। स्थानीय कारोबारियों की जगह बड़ी रिटेल चेन दिखने लगती हैं। सामान सस्ता मिलने की वजह से शुरू-शुरु में लोग भी इन्हें हाथों-हाथ लेते हैं।
इसका असर क्या होता है? जैसे ही बाज़ार से प्रतिस्पर्धा ख़त्म हुई और बाज़ार पर एकाधिकार हुआ फिर ये कंपनियां अपनी मर्ज़ी से कारोबार करती हैं। लेकिन ये माॅडल भारत जैसे देश में कितना सफल है? अमेरिका और इज़रायल के मुक़ाबले भारत की आबादी इसमें बड़ी बाधा है। जितने लोग असंगठित क्षेत्र से बेरोज़गार होंगे उतनों को नयी व्यवस्था में रोज़गार नामुमकिन है। ग़रीब, कम पढ़े लिखे और अंग्रेज़ी न जानने वाले के लिए इसमें जगह ही नहीं है।
यही वजह है कि जीडीपी बढ़ने के सरकार के दावों के बावजूद कारोबार चौपट है और बेरोज़गारी बढ़ रही है। नयी व्यवस्था में गिनती की सौ से भी कम कंपनियां तेज़ी से फैल रही हैं लेकिन लाखों उत्पादन इकाइयां बंद हो गई हैं। कुछ स्टोर्स खुले हैं जो शानदार कारोबार कर रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ऑनलाइन कारोबार भी बढ़ा है मगर नुक्कड़ के लालाजी परेशान हैं। रिलायंस, अडानी, जिंदल, डालमिया, रामदेव और गोयनका भारत नहीं हैं। उनका कारोबार हज़ार गुना और मुनाफा लाख गुना बढ़ने का मतलब भारत का विकास नहीं है। अर्थव्यवस्था 12% की दर से भी बढ़े तो इसका आमजन को कोई फायदा नहीं मिलने वाला क्योंकि ये औद्योगिक घरानों के मुनाफे और धंधे की बढ़ोत्तरी है। जब तक इस पैसे का विकेंद्रीकरण नहीं होगा, यानि आम आदमी का रोज़गार और आम व्यापारी का कारोबार नहीं बढ़ेगा विकास दर में फीसदी बढ़ते रहेंगे और हमारे संसाधनों पर ईस्ट इंडिया कंपनियां पैदा होती रहेंगी।

(लेख़क परिचय: यह आर्टिकल ज़ैगम मुरतज़ा की फेसबुक वॉल से लिया गया है.)

Sunday, September 2, 2018

मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल का निष्पक्ष मूल्यांकन करना हो तो 2014 के चुनाव में मोदी जी द्वारा किये गये वादे और आज की हक़ीक़त को ध्यान से देखिये कहा गया था

ग़रीब हो या अमीर हर व्यक्ति बड़े से बड़े कष्ट को ये कहकर बर्दाश्त कर लेता है कि “जो कुछ भी हो रहा है भगवान की मर्ज़ी” क्या आपको नहीं लगता है कि ऐसा ही कुछ इस समय देश की जनता के साथ हो रहा है? क्या आपको ‘शोले’ फ़िल्म का वो दृश्य नहीं याद आ रहा है जिसमें अमिताभ बच्चन अपने दोस्त धर्मेन्द्र की हर बुराई गिनाने के बाद कहता है तो फिर मौसी बसंती के साथ वीरू का रिश्ता पक्का समझू?
मौसी ने तो जय को मना कर दिया था पता नही आप मना कर पाएंगे या एक बार फिर गप्पू के चक्कर में फंस जाएंगे? राजशाही व्यवस्था में भी राजा के कारिंदे ग़रीबों को यही समझाया करते थे तुम्हारे जीवन में जो भी कष्ट है वो तुम्हारे पिछले दिनो का पाप है जनता भी यही मानकर बैठ जाती थी। हमारी भुखमरी, ग़रीबी, आशिक्षा में राजा का कोई दोष नहीं, ये सब तो पिछले जन्म का पाप है। ऐसा ही कुछ इस वक़्त देश में हो रहा है।

मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल का निष्पक्ष मूल्यांकन करना हो तो 2014 के चुनाव में मोदी जी द्वारा किये गये वादे और आज की हक़ीक़त को ध्यान से देखिये कहा गया था:-

1. इतना काला धन लायेंगे हर आदमी के खाते में 15 लाख रुपये जमा हो जायेगा। आज तक 15 पैसे भी किसी के खाते में नहीं आये, हां स्विस बैंक में कालाधन ज़रूर दोगुना हो गया।

2. कहा गया युवाओं को 2 करोड़ रोज़गार देंगे, 84 प्रतिशत रोज़गार घटा है मोदी जी के राज में। अब तो रोज़गार का आंकड़ा भी आना बंद हो गया।

3. बेटियों को सुरक्षा देने की बात कहकर मात्र 15 पैसे प्रति महिला प्रतिदिन ख़र्च का प्रावधान बजट में रखा गया। भाजपा के तमाम मंत्री विधायक और नेता बलात्कार और हत्या के मामले में लिप्त पाये गये।

4. महंगाई कम करने का वादा करके 85 रुपये लीटर पेट्रोल और 75 रु लीटर डीज़ल बेचा गया। प्याज़, आलू और चीनी के दाम समय-समय पर बढ़ाये गये।

5. डालर का दाम 40 रुपये करने की बात कहकर 71 रु पहुंचा दिया गया।

6. नोटबंदी का तुग़लकी फ़रमान जारी कर दिया गया। 99.3 फीसदी पैसा बैंकों में वापस आ गया। न काला धन ख़त्म हुआ, न आतंकवाद। हां 150 जिंदगियां लाइन में लगकर ज़रूर ख़त्म हो गई। देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। GDP नीचे गिर गई जिससे लगभग 2.25 लाख करोड़ का घाटा हुआ।

7. One Nation One Tax के नाम पर GST लागू कर One Nation Multiple Tax का फ़ार्मुला लगा दिया गया। आज व्यापारी अपना धंधा करने के बजाय दिन रात हिसाब किताब में परेशान रहता है।

8. किसान आत्महत्याएं करने को मजबूर हैं। आज़ादी के बाद पहली बार अपनी फ़सल का उचित दाम न मिलने व क़र्ज़ माफ़ न किये जाने के विरोध में किसानो ने PMO के सामने नग्न प्रदर्शन करके अपना मलमूत्र तक पिया। अपनी उपज को खेतों में जलाकर और सड़कों पर नष्ट करके अपना विरोध दर्ज कराया।

9. विदेशी यात्राओं पर पानी की तरह पैसा बहाकर इन्वेस्टमेंट के नाम पर दिखावा किया गया।

10. राष्ट्रीय सुरक्षा और देश भक्ति की दुहाई देने वाली सरकार के राज में पाकिस्तान द्वारा सबसे अधिक सीमा का उल्लंघन किया गया। डोकलाम में लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है।

11. एक के बदले 10 सिर काटने की बात कहकर नवाज़ शरीफ़ के बर्थडे का केक काटा गया। ISI से पठानकोट की जांच कराई गई। पाकिस्तान को टक्कर देने की बात कहकर वहां से शक्कर मंगाई गई, अब तो पाकिस्तान की सेना के साथ साझा युद्ध अभ्यास का शर्मनाक फ़ैसला भी ले लिया गया है।

12. 500 करोड़ के बजाय 1600 करोड़ का जहाज़ ख़रीदकर राफ़ेल रक्षा सौदे में हज़ारों करोड़ की दलाली खाई गई। चेहरे पे जो लाली है राफ़ेल की दलाली है।

13. अफ़ज़ल गुरु पर रोज सवाल पूछने वालों ने अफ़ज़ल गुरु को शहीद मनाने वाली PDP के साथ सरकार बनाई।

14. बैंकों में जमा जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा बड़े-बड़े उद्योगपतियों को रेवड़ी की तरह क़र्ज़ के रूप में बांट दिया गया। चंद उद्योगपतियों पर 8.55 लाख करोड़ का क़र्ज़ बाक़ी है। इन बेइमानों से पैसा वापस लाना तो दूर 2100 करोड़ का क़र्ज़ा लेकर ललित मोदी भाग गया। 9 हज़ार करोड़ रुपये लेकर विजय मल्ल्या भाग गया। 21 हज़ार करोड़ लेकर निरव मोदी भी भाग गया और हमको काला धन लाने का सपना दिखाया जा रहा है।

15. लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारों को राज्यपाल और उपराज्यपाल के ज़रिये अस्थिर करके लोकतन्त्र और संविधान का माखौल उड़ाया गया।
इन तमाम झूठे जुमलों के साथ जनता को मूर्ख बनाने का काम जारी है। देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का काम भी ख़ूब चल रहा है। मुसलमानो और दलितों के ख़िलाफ़ जमकर नफ़रत फेलाई जा रही है। एक लाख से लेकर पहलू खान तक गाय के नाम पर इंसान की जान ली जाती रही, लेकिन मोदी जी के मुंह से समय पर एक शब्द भी न निकला। हां लिंचिंग करके इंसान की जान लेने वाले क़ातिलों को मोदी जी के मंत्री ने माला पहनाकर स्वागत ज़रूर किया।

उना से लेकर उत्तर प्रदेश तक दलितों पर अत्याचार जारी है। उनकी हत्यायें भी की जा रही हैं, लेकिन मोदी जी ख़ामोश हैं। दरअसल असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिये हमको आपको इन नक़ली मुद्दों पर उलझाये रखा गया जिससे सारे गुनाह छिपायें जा सकें।

मोदी जी का बौधिक ज्ञान भी माशाअल्लाह है… कुछ बातें हंसने के लिये, याद कीजिये….

1. मोदी जी ने तक्षशिला को बिहार में बता दिया।
2. शहीदे आज़म भगत सिंह को अंडमान निकोबार की जेल में पहुंचा दिया।
3. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दयानंद सरस्वती से मिलवा दिया।
4. कबीर गुरुनानक देव और बाबा गोरखनाथ को एक साथ बैठा दिया, जबकि तीनों के इस दुनिया में होने के बीच सैकड़ों साल का अंतर है।
5. Strength की अंग्रेज़ी ही विदेश में जाकर बदल दी।
6. सरकारी रोज़गार देने का वादा करके पकौड़ा रोज़गार, ऑटो टैक्सी रोज़गार को अपनी उपलब्धि गिना दी।
7. पिछले दिनो नाले के गैस से चाय तक बनवा दी।
ऐसे महापुरुष आदरणीय मोदी जी की उपलब्धियों के बारे में ज़रा गम्भीरता से सोचिये। कहीं ऐसा तो नही की सिर्फ़ सोते समय ख़ामोश रहने वाले मोदी जी ने दिन रात भाषण दे-देकर आपकी सोचने समझने की शक्ति छीन ली है। क्या हर तरह से देश का बेड़ा गरक करने वाले मोदी जी का वाक़ई कोई विकल्प नही? क्या हम फिर से अपनी ज़िंदगी को जोखिम में डालने और देश को बर्बादी की कगार पर पहुंचाने के लिये तैयार हैं, क्यूँकि भाजपाईयों और गोदी मीडिया ने अपनी सारी नाकामियों को छिपाने का एक नया फ़ार्मूला खोज लिया।

न समझोगे तो मिट जाओगे…. ये हिंदुस्तान वालों तुम्हारी दांसता तक न होगी दस्तानों में।

(इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति ‘जनता का रिपोर्टर’ उत्तरदायी नहीं है।)

Thursday, July 12, 2018

जियो इंस्टिट्यूट के सभी छात्रों ने अपनी फीस उसी 15 लाख रुपये से भरी है जो उनके खाते में आए थ

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा रिलायंस समूह के प्रस्तावित जियो इंस्टिट्यूट को उत्कृष्ट संस्थानों की सूची में शामिल किए जाने की खबर कल से ही सोशल मीडिया पर चर्चा में है. जियो इंस्टिट्यूट अभी कागजों में ही है, फिर भी सरकार द्वारा इसे उत्कृष्ट संस्थानों की सूची में शामिल करने पर यहां कई लोगों ने सवाल उठाए हैं. प्रतिष्ठित इतिहासकार रामचंद्र गुहा का ट्वीट है, ‘अंबानी की वह यूनिवर्सिटी जिसका अभी अस्तित्व ही नहीं है, उसको इस तरह प्राथमिकता देना काफी चौंकाने वाली बात है. खासकर इसलिए भी क्योंकि (सूची में) कई प्रथम श्रेणी के निजी विश्वविद्यालयों की अनदेखी की गई है. क्या इन्हें बेहतरीन होने की और इस बात की सजा दी जा रही है कि यहां के लोग स्वतंत्र सोच-विचार के होते हैं.’

जियो इंस्टिट्यूट के सभी छात्रों ने अपनी फीस उसी 15 लाख रुपये से भरी है जो उनके खाते में आए थ

इस खबर के चलते फेसबुक और ट्विटर पर चुटकुलों की भी बाढ़ आई हुई है. यहां एक बड़े तबके ने अलग-अलग नेताओं पर तंज कसते हुए सुझाव दिए हैं कि उन्हें जियो इंस्टिट्यूट के किस विभाग का प्रमुख होना चाहिए. आशुतोष उज्ज्वल ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है, ‘जियो यूनिवर्सिटी के प्रिंसिपल इन वेटिंग.’ वहीं राजस्थान एक भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा, जो जेएनयू में कंडोम के इस्तेमाल से जुड़ा बयान देकर चर्चा में आए थे, को लेकर दिलीप खान ने सुझाव दिया है कि उन्हें जियो इंस्टिट्यूट के सांख्यिकीय विभाग का प्रमुख बनाया जाना चाहिए.

सोशल मीडिया में इस खबर पर आई कुछ और दिलचस्प प्रतिक्रियाएं :

गब्बर | @GabbbarSingh
हर दिन सुबह सैकड़ो छात्र अहमदाबाद से बुलेट ट्रेन पकड़ते हैं और बॉम्बे के जियो इंस्टिट्यूट में पढ़ने जाते हैं. इन छात्रों को एजूकेशन लोन लेने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि यहां लगने वाली भारी-भरकम ट्यूशन फीस उस 15 लाख रुपये से चुका दी गई है जो उन्हें पिछले साल मिले थे.

जेट ली (वसूली भाई) | @Vishj05
जियो इंस्टिट्यूट के बाहर अपनी डिग्री पाने के लिए लाइन लगाए छात्र-छात्राएं :

अमित तिवारी | facebook/amit.tiwary7
जियो यूनिवर्सिटी के टीचर - ‘सिलेबस पूरा न होगा तो क्या? हम तो फ़कीर हैं, झोला उठाकर चल पड़ेंगे जी.’
डिटेक्टिव | @Dhuandhaar
पहले दीक्षांत समारोह में जियो इंस्टिट्यूट के टॉपर का भाषण :

जियो इंस्टिट्यूट | @Jiolnstitute
जियो इंस्टिट्यूट के लिए कोई कागज इस्तेमाल नहीं किया जाएगा और पेड़ों को बचाने के लिए पाठ्य-सामग्री वॉट्सएप पर उपलब्ध कराई जाएगी.

उपाध्यक्ष, रामपाल युवा पार्टी | @Roflnath
जियो इंस्टिट्यूट में हेडमास्टर हाजिरी लेते हुए :

नितिन ठाकुर | facebook/nitin.thakur009
जियो इंस्टिट्यूट पर चुटकुले बनाकर हंसना-हंसाना एक बात है… कुछ वक्त निकालकर इस सरकार का दुस्साहस भी महसूस कीजिए कि ये अब आपको किस लेवल का मूर्ख समझने लगी है.

आयरनी ऑफ इंडिया | @IronyOfIndia_
जियो इंस्टिट्यूट (2019 बैच) के बीस सर्वश्रेष्ठ छात्र

Monday, June 18, 2018

`मैं बीजेपी से इस्तीफा क्यों दे रहा हूं’ कार्यकर्ता का ओपन लेटर

एक बीजेपी कार्यकर्ता अपनी पार्टी से इस्तीफा क्यों देना चाहता है? बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव की टीम में काम करने वाले शिवम शंकर सिंह ने अपने ब्लॉग में इस्तीफे का एक-एक कारण बताया है.

मिशिगन यूनिवर्सिटी से पास आउट शिवम शंकर सिंह को डेटा एनालिटिक्स में महारत हासिल है, राम माधव के साथ मिलकर उन्होंने बीजेपी को कई पूर्वोत्तर के राज्यों को जीत दिलाने में मदद की है...

आइए जानते हैं वो वजहें जिनके कारण शिवम शंकर सिंह ने पार्टी से इस्तीफा देने का मन बना लिया है.
अपने ब्लॉग की शुरुआत में शिवम लिखते हैं कि बीजेपी ने अविश्वसनीय रूप से प्रभावी प्रचार के साथ-साथ कुछ खास मैसेज को फैलाने में बहुत अच्छा काम किया है और यही 'मैसेज' कारण हैं जिनकी वजह से शिवम अब आगे पार्टी का समर्थन नहीं कर सकते.

अपने ब्लॉग में शिवम आगे बीजेपी सरकार की खामियों को गिनाते हैं. वो कहते हैं कि एक सिस्टम या देश को बनाने में सालों साल लगते हैं और बीजेपी ने बहुत सारी चीजों को बर्बाद कर दिया है. वो 7 खामियों को कुछ इस तरह गिनाते हैं- ((शिवम शंकर सिंह के ब्लॉग के शब्दों में))

1. इलेक्टोरल बॉन्ड्स: इसने करप्शन को लीगलाइज्ड कर दिया है जिसके कारण कोई भी विदेशी शक्ति या कॉरपोरेट सियासी पॉर्टियों को खरीद सकती है. बॉन्ड के बारे में किसी को पता नहीं चलता ऐसे में अगर कोई कॉरपोरेट किसी खास पॉलिसी को लागू कराने के लिए 1 हजार करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टी को देता है तो जाहिर है कि उसका काम हो जाएगा. इससे ये भी साफ होता है कि आखिर कैसे मिनिस्ट्रियल लेवल पर करप्शन कम हुआ है.

2. प्लानिंग कमीशन रिपोर्ट: ये डेटा के लिए एक अहम सोर्स था. प्लानिंग कमीशन में योजनाओं को आंका जाता था और फिर तय होता था कि काम किस रफ्तार से और कैसे चल रहा है. अब कोई विकल्प नहीं है. सरकार जो भी डेटा देती है उसपर भरोसा करना पड़ता है. नीति आयोग भी ऐसा नहीं करती, वो तो एक पीआर और थिंक टैंक एजेंसी जैसी है.

3. CBI और ED का गलत इस्तेमाल: जैसा कि मैं देख पा रहा हूं इन एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीति के लिए हो रहा है. अगर ऐसा नहीं भी हो रहा है तो मोदी/शाह के खिलाफ बोलने वालों पर इन एजेंसियों का डर बना हुआ है. विरोध करने वालों को रोकना लोकतंत्र पर खतरा है.

4. कलिखो पुल, जज लोया, शोहराबुद्दीन मर्डर केस की जांच में नाकाम रहना. उन्नाव में एक ऐसे विधायक को बचाना जिसके रिश्तेदार पर एक लड़की के पिता की हत्या का आरोप हो. FIR एक साल बाद दर्ज हो सकी.

5. नोटबंदी: ये नाकाम रहा, लेकिन सबसे बुरा ये है कि बीजेपी इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं. नोटबंदी से टेरर फंडिंग को रोकने, कैश को कम करने जैसी बातें बेतुकी हैं. इसने कई कारोबार को खत्म कर डाला.

6. जीएसटी: जल्दबाजी में लागू किया गया जिससे कारोबार को नुकसान पहुंचा. एक ही आइटम के लिए अलग-अलग रेट, उलझे हुए ढांचे ने नुकसान ही पहुंचाया है. और बीजेपी ने इस नाकामी को भी स्वीकार नहीं किया है.

7. उलझी हुई विदेश नीति: चीन का श्रीलंका में बंदरगाह है, बांग्लादेश और पाकिस्तान में उसकी खासी रूचि है. हम चारों ओर से घिरे हैं. मालदीव में विदेश नीति असफल रही. इन सबके बावजूद मोदी जी जब विदेश जाते हैं तो ये कहते हैं कि भारतीयों का 2014 से पहले विश्व में कोई सम्मान नहीं था और अब बहुत सम्मान मिल रहा है (ये बिलकुल बेतुका है. विदेश में भारत का सम्मान, बढ़ती अर्थव्यवस्था और आईटी क्षेत्र का सीधा परिणाम होता है. ये मोदी जी की वजह से थोड़ा भी नहीं बढ़ा. बल्कि बीफ के शक में हत्या, पत्रकारों को धमकी की वजह से खराब ही हुआ है.)

8. योजनाओं की विफलता: सांसद आदर्श ग्रामा योजना, मेक इन इंडिया, स्किल डेवलपमेंट, फसल बीमा योजना (ये सरकारें इंश्योरेंस कंपनियों के लिए योजनाएं बना रही हैं क्या?). रोजगार और किसान संकट के लिए कुछ भी नहीं कर सकी है सरकार. हर वास्तविक मुद्दे को विपक्षी पार्टियों का स्टंट बताना.

9. पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम: इसकी कीमतों को लेकर मोदीजी, बीजेपी के मंत्री और सभी समर्थकों ने कांग्रेस की आलोचना की थी. अब पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत को ये सही बता रहे हैं जबकि पहले की तुलना में कच्चा तेल अभी सस्ता है.

10. सबसे जरूरी मुद्दे पर बात नहीं: एजुकेशन और हेल्थकेयर जैसे सबसे अहम मुद्दों पर बात नहीं होती है. सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है. कोई कार्रवाई नहीं की गई. पिछले 4 साल में हेल्थकेयर के भी हालात खस्ता हैं.
बदसूरत क्या है?

शिवम शंकर सिंह ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि उनके मुताबिक इस सरकार का सबसे नकारात्मक चेहरा है कि कैसे इसने देश में बातचीत का मुद्दा ही बदलकर रख दिया. ये पूरे प्लान के तहत किया गया. शिवम ने
मोदी सरकार के 8 ‘बदसूरती’ अपने ब्लॉग में बताई है.

1. सरकार ने मीडिया को बदनाम कर दिया है. हर सवाल उठाने वाले पत्रकार को बिका हुआ साबित करने की कोशिश की गई. ये मुद्दे उठाते हैं और खुद ही उन मुद्दों की अनदेखी कर छोड़ जाते हैं.

2. ऐसा बताया जा रहा है कि 70 साल में भारत में कुछ भी नहीं हुआ, जो हो रहा है इसी सरकार में हो रहा है. ये सरासर झूठ है और ये मानसिकता देश के लिए खतरनाक है. इस सरकार ने विज्ञापनों पर हमारे करदाताओं के पैसे का 4,000 करोड़ खर्च किया और अब ये ट्रेंड बन जाएगा. काम छोटा, ब्रांडिग बड़ी. मोदी कोई ऐसे पहले नहीं थे जो सड़क बनवा रहे हैं, उनसे बेहतर सड़के मायावती और अखिलेश ने बनवाईं हैं. लेकिन हर स्कीम का प्रचार कुछ ऐसे ही किया जा रहा है.
3. फेक न्यूज का प्रचार बेहद तेजी से हुआ है. एंटी बीजेपी फेक न्यूज भी हैं, लेकिन प्रो-बीजेपी और एंटी-अपोजिशन वाले फेक न्यूज की संख्या कई गुना ज्यादा हैं. ज्यादातर ऐसे मैसेज बीजेपी की तरफ से ही आते हैं, ये समाज तोड़ने वाले मैसेज होते हैं. इससे ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है.

4. हिंदू खतरे में हैं. ये शिगूफा छेड़ दिया गया है. लोगों के दिमाग में ये बिठाया जा रहा है कि हिंदू और हिंदूत्व खतरे में है और मोदी इसे बचाने वाले एकमात्र विकल्प हैं. हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है.

5. सरकार के खिलाफ बोलने वाले एंटी-नेशनल कहे जाते हैं और अब तो एंटी-हिंदू भी. ऐसी लेबलिंग करके तो सरकार की आलोचना भी बंद कर दी गई है. अपना राष्ट्रवाद साबित करो, हर जगह वंदे मातरम गाते रहो (ऐसे बीजेपी नेता भी वंदेमातरम गाने को कहते हैं जिनको इसका एक शब्द भी नहीं पता!).

6. बीजेपी के स्वामित्व वाले न्यूज चैनल चल रहे हैं, जिनका इकलौता काम है हिंदू-मुस्लिम, नेशनलिस्ट-एंटी नेशनलिस्ट, भारत-पाकिस्तान पर डिबेट करना. लोगों की भावनाओं को भड़काना. असली मुद्दों से उनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं.

7. ध्रुवीकरण: विकास का सारा मैसेज खत्म हो गया. अब अगले चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति है ध्रुवीकरण और छद्म राष्ट्रवाद. मोदी जी के भाषणों में भी आपको जिन्ना-नेहरु, कांग्रेस नेताओं ने जेल में भगत सिंह से मुलाकात नहीं की (फेक न्यूज, जो खुद पीएम ने दी) ऐसे ही चीजें मिलेंगी. इन सबके एक ही मायने हैं, ध्रुवीकरण करो और चुनाव जीत लो.
आखिर में शिवम ने लिखा है कि मैं नरेंद्र मोदी जी का साल 2013 से समर्थक था. उनमें मुझे देश के लिए और विकास के लिए आशा की किरण दिखती थी. अब सब खत्म हो गया है. मुझे मोदी और शाह की खामियां उनकी सकारात्मक चीजों से ज्यादा लगती हैं...

( शिवम शंकर सिंह के ब्लॉग को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे)

Saturday, June 16, 2018

योगी का दिया चेक बाउंस, हाई स्कूल टॉपर ने अखिलेश यादव से मांगी मदद ..

उत्तर प्रदेश में हाईस्कूल टॉपर के चेक के बाउंस होने का मामला सामने आया है। चेक बाउंस होने का दुख खुद स्टूडेंट आकाश द्विवेदी ने सोशल मीडिया ट्विटर के जरिये जाहिर किया है। यह चेक सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी में 8वीं रैंक लाने वाले आकाश द्विवेदी को अपने हाथों से सौंपा था।
अपने माता-पिता के साथ टॉपर आकाश द्विवेदी।
ट्वीट के बाद डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने स्टूडेंट से इसका पूरा विवरण मांगा है लेकिन दोबारा चेक बाउंस होने से एक बार फिर से यूपी सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

यूपी बोर्ड में हाई स्कूल में जिला टॉपर आकाश द्विवेदी ने जब 11 जून को अपने ट्विटर पर चेक बाउंस होने की जानकारी दी, तो लोगों को इस बात के बारे में पता चला। आकाश द्विवेदी ने पूर्व सीएम अखिलेश यादव, जर्नलिस्ट सुधीर चौधरी, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग करते हुए लिखा था कि 'सर, मैं आकाश द्विवेदी प्रतापगढ़ जिले का टॉपर, मैंने 2018 की 10वीं की परीक्षा में यूपी में आठवां स्थान प्राप्त किया है। सीएम योगी के द्वारा मुझे एक लाख रुपए का चेक दिया गया लेकिन वो बाउंस हो गया है। मैं दुखी हूं, सुधीर सर हेल्प मी।'

आकाश द्विवेदी ने अखिलेश यादव से मदद भी मांगी।

उसने कहा कि सर मेरी बात सरकार तक पहुंचाने में मदद करें।

डिप्टी सीएम ने दिया जवाब
पीड़ित स्टूडेंट के ट्वीट का जवाब देते हुए डिप्टी सीएम ने कहा कि 'कृपया आप तत्काल संजय अग्रवाल अपर मुख्य सचिव या मुझसे फोन पर अथवा मिलकर पूरा विवरण दें।'
बता दें कि चेक बाउंस होने का यह पहला मामला नहीं है...

Friday, May 25, 2018

पेट्रो मूल्य वृद्धि को लेकर मोदी से जुड़े ये कार्टून सोशल मीडिया पर हुए सुपरहिट

अब सुनिए पेट्रोल के दाम बढ़ने का सबसे बड़ा फायदा (नजर बहुत दूर तक रखियेगा)… पेट्रोल का मूल्य बढ़ने से देश में अस्पतालों की जरूरत ख़त्म हो जाएगी। लोग बाइक और कारें कबाड़ी के हाथों सस्ते में बेच लेंगे (कबाड़ी को रोजगार के अवसर मिलेंगे) और साइकिल से अपनी यात्राओं का आनंद लेंगे।

अधिक शारीरिक मेहनत करने के कारण लोग कम से कम बीमार पड़ेंगे, शरीर मेनटेन रहेगा। इस कारण दवाओं पर और चेकअप पर होने वाला खर्च बचाकर लोग धंधे पर और टैक्स देने पर लगायेंगे। देश का खजाना भरेगा परिणाम स्वरुप देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

साइकिल से चलने का दूसरा लाभ ये होगा(ये पेट्रोल मूल्य वृद्धि का ही फायदा है, न भूलें) कि लोग अपनी यात्रा को सुगम और रोमांचक बनाने के लिए सड़क के किनारे घने पेड़ लगाने की व्यवस्था करेंगे। अभी ये काम सरकार को करना पड़ता है लेकिन जब धुप में एक घंटा साइकल खींचने पर एक हाथ लम्बी कुत्ते जैसी जबान निकलेगी तो खुद से पेड़ लगायेंगे। इस तरह पर्यावरण में आमूलचूल परिवर्तन होंगे। पेड़ों की वजह से वर्षा चक्र नियमित होगा।

फ़िलहाल मेरा फेफड़ा फूलने लगा है इसके फायदे खोजते खोजते, कुछ आप लोग भी खोजिये। इससे पहले कि राष्ट्र(वि)वादी आयें, मुझे ‘कोसाध्यक्ष’ की उपाधि से सम्मानित करें और गालियों से मेरा पेट भर दें, चल के थोड़ा नाश्ता कर लिया जाए। हर देशभक्त शेयर करे.

Sunday, May 13, 2018

भगत सिंह और नेहरू को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने जो बोला है, वो ग़लत नहीं बल्कि झूठ है

नेहरू से लड़ते-लड़ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चारों तरफ नेहरू का भूत खड़ा हो गया. नेहरू का अपना इतिहास है. वो किताबों को जला देने और तीन मूर्ति भवन के ढहा देने से नहीं मिटेगा. यह ग़लती ख़ुद मोदी कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनाव जीतना बड़ी बात नहीं है. वे जितने चुनाव जीत चुके हैं या जिता चुके हैं यह रिकॉर्ड भी लंबे समय तक रहेगा. कर्नाटक की जीत कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी को अपनी हार देखनी चाहिए. वे किस तरह अपने भाषणों में हारते जा रहे हैं. आपको यह हार चुनावी नतीजों में नहीं दिखेगी. वहां दिखेगी जहां उनके भाषणों का झूठ पकड़ा जा रहा होता है. उनके बोले गए तथ्यों की जांच हो रही होती है. इतिहास की दहलीज़ पर खड़े होकर झूठ के सहारे प्रधानमंत्री इतिहास का मज़ाक उड़ा रहे हैं. इतिहास उनके इस दुस्साहस को नोट कर रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपना शिखर चुन लिया है. उनका एक शिखर आसमान में भी है और एक उस गर्त में हैं जहां न तो कोई मर्यादा है न स्तर है. उन्हें हर कीमत पर सत्ता चाहिए ताकि वे सबको दिखाई दें शिखर पर मगर ख़ुद रहें गर्त में. यह गर्त ही है कि नायक होकर भी उनकी बातों की धुलाई हो जाती है. इस गर्त का चुनाव वे ख़ुद करते हैं. जब वे ग़लत तथ्य रखते हैं, झूठा इतिहास रखते हैं, विरोधी नेता को उनकी मां की भाषा में बहस की चुनौती देते हैं. ये गली की भाषा है, प्रधानमंत्री की नहीं.

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी के लिए नेहरू चुनौती बन गए हैं. उन्होंने खुद नेहरू को चुनौती मान लिया है. वे लगातार नेहरू को खंडित करते रहते हैं. उनके समर्थकों की सेना व्हाट्सऐप नाम की झूठी यूनिवर्सिटी में नेहरू को लेकर लगातार झूठ फैला रही है. नेहरू के सामने झूठ से गढ़ा गया एक नेहरू खड़ा किया जा रहा है. अब लड़ाई मोदी और नेहरू की नहीं रह गई है. अब लड़ाई हो गई है असली नेहरू और झूठ से गढ़े गए नेहरू की. आप जानते हैं इस लड़ाई में जीत असली नेहरू की होगी.

नेहरू से लड़ते-लड़ते प्रधानमंत्री मोदी के चारों तरफ नेहरू का भूत खड़ा हो गया. नेहरू का अपना इतिहास है. वो किताबों को जला देने और तीन मूर्ति भवन के ढहा देने से नहीं मिटेगा. यह ग़लती खुद मोदी कर रहे हैं. नेहरू-नेहरू करते-करते वे चारों तरफ नेहरू को खड़ा कर रहे हैं. मोदी के आस-पास अब नेहरू दिखाई देने लगे हैं. उनके समर्थक भी कुछ दिन में नेहरू के विशेषज्ञ हो जाएंगे, मोदी के नहीं. भले ही उनके पास झूठ से गढ़ा गया नेहरू होगा मगर होगा तो नेहरू ही.

प्रधानमंत्री के चुनावी भाषणों को सुनकर लगता है कि नेहरू का यही योगदान है कि उन्होंने कभी बोस का, कभी पटेल का तो कभी भगत सिंह का अपमान किया. वे आज़ादी की लड़ाई में नहीं थे, वे कुछ नेताओं को अपमानित करने के लिए लड़ रहे थे. क्या नेहरू इन लोगों का अपमान करते हुए ब्रिटिश हुकूमत की जेलों में 9 साल रहे थे?

इन नेताओं के बीच वैचारिक दूरी, अंतर्विरोध और अलग-अलग रास्ते पर चलने की धुन को हम कब तक अपमान के फ्रेम में देखेंगे. इस हिसाब से तो उस दौर में हर कोई एक दूसरे का अपमान ही कर रहा था. राष्ट्रीय आंदोलन की यही खूबी थी कि अलग-अलग विचारों वाले एक से एक कद्दावर नेता थे. ये खूबी गांधी की थी.

उनके बनाए दौर की थी जिसके कारण कांग्रेस और कांग्रेस से बाहर नेताओं से भरा आकाश दिखाई देता था. गांधी को भी यह अवसर उनसे पहले के नेताओं और समाज सुधारकों ने उपलब्ध कराया था. मोदी के ही शब्दों में यह भगत सिंह का भी अपमान है कि उनकी सारी कुर्बानी को नेहरू के लिए रचे गए एक झूठ से जोड़ा जा रहा है.

भगत सिंह और नेहरू को लेकर प्रधानमंत्री ने जो ग़लत बोला है, वो ग़लत नहीं बल्कि झूठ है. नेहरू और फील्ड मार्शल करियप्पा, जनरल थिम्मैया को लेकर जो ग़लत बोला है वो भी झूठ था. कई लोग इस ग़लतफ़हमी में रहते हैं कि प्रधानमंत्री की रिसर्च टीम की ग़लती है. आप ग़ौर से उनके बयानों को देखिए.
जब आप एक शब्दों के साथ पूरे बयान को देखेंगे तो उसमें एक डिज़ाइन दिखेगा.

भगत सिंह वाले बयान में ही सबसे पहले वे खुद को अलग करते हैं. कहते हैं कि उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है और फिर अगले वाक्यों में विश्वास के साथ यह कहते हुए सवालों के अंदाज़ में बात रखते हैं कि उस वक्त जब भगत सिंह जेल में थे तब कोई कांग्रेसी नेता नहीं मिलने गया. अगर आप गुजरात चुनावों में मणिशंकर अय्यर के घर हुए बैठक पर उनके बयान को इसी तरह देखेंगे तो एक डिज़ाइन नज़र आएगा.

बयानों के डिज़ाइनर को यह पता होगा कि आम जनता इतिहास को किताबों से नहीं कुछ अफवाहों से जानती है. भगत सिंह के बारे में यह अफवाह जनसुलभ है कि उस वक्त के नेताओं ने उन्हें फांसी से बचाने का प्रयास नहीं किया. इसी जनसुलभ अफवाह से तार मिलाकर और उसके आधार पर नेहरू को संदिग्ध बनाया गया.

नाम लिए बग़ैर कहा गया कि नेहरू भगत सिंह से नहीं मिलने गए. यह इतना साधारण तथ्य है कि इसमें किसी भी रिसर्च टीम से ग़लती हो ही नहीं सकती. तारीख या साल में चूक हो सकती थी मगर पूरा प्रसंग ही ग़लत हो यह एक पैटर्न बताता है.

ये और बात है कि भगत सिंह सांप्रदायिकता के घोर विरोधी थे और ईश्वर को ही नहीं मानते थे. सांप्रदायिकता के सवाल पर नास्तिक होकर जितने भगत सिंह स्पष्ट हैं, उतने ही ऐग्नास्टिक (अनीश्वरवादी ) होकर नेहरू भी हैं. बल्कि दोनों करीब दिखते हैं. नेहरू और भगत सिंह एक दूसरे का सम्मान करते थे. विरोध भी होगा तो क्या इसका हिसाब चुनावी रैलियों में होगा.

नेहरू का सारा इतिहास मय आलोचना अनेक किताबों में दर्ज है. प्रधानमंत्री मोदी अभी अपना इतिहास रच रहे हैं. उन्हें इस बात ख़्याल रखना चाहिए कि कम से कम वो झूठ पर आधारित न हो. उन्हें यह छूट न तो बीजेपी के प्रचारक के तौर पर है और न ही प्रधानमंत्री के तौर पर.
कायदे से उन्हें इस बात के लिए माफी मांगनी चाहिए ताकि व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी के ज़रिए नेहरू को लेकर फैलाए जा रहे ज़हर पर विराम लगे. अब मोदी ही नेहरू को आराम दे सकते हैं. नेहरू को आराम मिलेगा तो मोदी को भी आराम मिलेगा.

(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)