Thursday, January 24, 2019

अस्थाना-वर्मा सीरीज के विजेता है मोदी जी, 99 पर आउट होने का दर्द कोई आलोक वर्मा से पूछे !

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI में मचे घमासान की वजह से सीबीआई के नंबर 1 अधिकारी यानी की आलोक वर्मा और नंबर दो राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया जाता है. जिसके बाद आलोक वर्मा ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई. आलोक वर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि वे कुछ बेहद संवेदनशील मामलों की जांच कर रहे थे और सरकार द्वारा उन्हें छुट्टी पर भेजा जाना असंवैधानिक है. कानूनी रूप से सीबीआई निदेशक को उनकी नियुक्ति के बाद दो साल तक नहीं हटाया जा सकता है. जिसके बाद बीते मंगलवार को इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक आलोक कुमार वर्मा को उनके अधिकार छीन कर छुट्टी पर भेजने के केंद्र सरकार के फैसले को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद आलोक वर्मा ने बुधवार को अपना कार्यभार दोबारा संभाला था. कोर्ट के फैसले के 48 घंटे से कम समय के भीतर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को फिर से पद से हटा दिया गया है. नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने आलोक को सीबीआई निदेशक पद से हटाने का फैसला लिया है जिस चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और जस्टिस एके सीकरी भी थे. हालाँकि मल्लिकार्जुन खड़के ने आलोक वर्मा को हटाने का विरोध किया.

सवाल है की एक निदेशक को हटाने की इतनी भी जल्दी क्या थी ? ऐसा क्या हो गया कि जिस आलोक वर्मा को सलेक्ट कमेटी ने चीफ बनाया उसी ने रिटायरमेंट से 21 दिन पहले उन्हें हटा दिया. सरकार सुप्रीम कोर्ट का मज़ाक बना रही है या खुद का ? एक निदेशक जो 21 दिनों बाद खुद रिटायर हो रहा हो उसे पद से हटाने की इतनी छटपटाहट के क्या मायने है ? आपको याद होगा की जब आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश दिए थे तब आधी रात को सीबीआई मुख्यालय का घेराव कर वर्मा को छुट्टी पर भेज कर सीबीआई का निदेशक नागेश्वर राव को बना दिया जाता है. और कल रात फिर से आलोक वर्मा हटा दिए गए. बस फ़र्क़ इतना है की पिछली बार आधी रात को हटा दिए गए थे और इस बार आधी रात के पहले ही हटा दिए गए.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक आलोक वर्मा कुछ ऐसे बेहद संवेदनशील मामलों की जांच कर रहे थे जो आने वाले समय में कुछ बड़े खुलासे कर सकते थे.

1 – इसमें सबसे मुख्य मामला है राफेल सौदे में कोई घोटाला हुआ है की नहीं इसकी जांच करना. पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिंहा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले को लेकर चार अक्टूबर को सीबीआई में 132 पेज का शिकायत पत्र सौंपा था, जिसे आलोक वर्मा ने स्वीकार किया था. सूत्रों की माने तो इस मामले में जल्द ही फैसला लिया जाना था.
2 – सीबीआई मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिश्वत मामले की जांच कर रही थी. इस पूरे मामले में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी को गिरफ्तार किया गया था. सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट भी तैयार कर ली थी और अब आलोक वर्मा का बस हस्ताक्षर होना बाकी था.
3 – मेडिकल एडमिशन में भ्रष्टाचार मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला को आरोपी बताया गया था और सीबीआई इस मामले की जांच कर रहा था. सूत्रों की माने तो इस मामले की शुरुआती जांच पूरी हो गई थी और इस पर भी सिर्फ आलोक वर्मा के हस्ताक्षर होने बाकी थे.
4 – बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा वित्त और राजस्व सचिव हसमुख अधिया के खिलाफ की गई शिकायत की भी जांच सीबीआई कर रहा था.
5 – प्रधानमंत्री के सचिव IAS अफसर भास्कर कुल्बे की कोयला खदानों के आवंटन में भूमिका को लेकर सीबीआई जांच कर रही है.
6 – एक और मामले में दिल्ली के एक बिचौलिए के यहां अक्टूबर के पहले महीने में छापा मारा था. सीबीआई के अनुसार आरोपी ने पीएसयू में सीनियर पदों पर नियुक्ति के लिए नेता और अधिकारियों को रिश्वत दी थी जिसकी जांच चल रही थी.
7 – सीबीआई नितिन संदेसरा और स्टर्लिंग बायोटेक मामले की जांच खत्म करने वाली थी. इस मामले में सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की कथित भूमिका को लेकर जांच की गई थी.
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था और अब 2019 इस पिंजरे में क्या क्या हो रहा है आप बेहतर समझ सकते हैं।