Friday, October 27, 2017

सांसद वरुण गांधी शामिल हो सकते हैं कांग्रेस में, बहन प्रियंका का बुलावा

भाजपा के खिलाफ अपरोक्ष हमले करने वाले वरुण अपनी चचेरी बहन प्रियंका के बुलावे और वक्त की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस के सहारे राजनीति करते नजर आने वाले हैं।

बीजेपी में उपेक्षा का शिकार हुए सुल्तानपुर के सांसद वरुण गांधी अब अपने पुश्तैनी घर लौटने का मूड बना चुके हैं। बात हैरान करने वाली है। लेकिन सच यही है कि बीजेपी में अलग-थलग पड़े वरुण गांधी अब अपनी खानदानी पार्टी में वापसी की तैयारी कर चुके हैं। दरअसल खबर है कि वर्ष 2019 से पहले वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं। भाजपा के खिलाफ अपरोक्ष हमले करने वाले वरुण अपनी चचेरी बहन प्रियंका के बुलावे और वक्त की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस के सहारे राजनीति करते नजर आने वाले हैं।

सूत्रों के मुताबिक पारिवारिक मतभेदों के बावजूद वरुण गांधी के रिश्ते प्रियंका से हमेशा मधुर रहे हैं। राहुल गांधी के खिलाफ भी वरुण ने कभी सीधा हमला नहीं बोला। इसी तरह राहुल गांधी ने भी विपक्षी दल में रहने के बावजूद वरुण या मेनका के खिलाफ कभी सीधा मोर्चा नहीं खोला। वरुण के रिश्ते बड़ी मां सोनिया से भी ठीक ठाक हैं। वरुण की बीजेपी से जैसे-जैसे दूरी बनती रही, वैसे-वैसे वह अपने परिवार के करीब आते गए। इस पारिवारिक रिश्ते में सबसे बड़ी दिक्कत सोनिया गांधी और मेनका गांधी के बीच छत्तीस के आंकड़े की थी, पर वक्त की नजाकत और अपने बेटों का राजनीतिक भविष्य देखते हुए दोनों माताओं ने रिश्ते पर जमी बर्फ पिघलने के संकेत दिए हैं। इससे लग रहा है कि यह बाधा अब खत्म हो जाएगी। दरअसल राहुल के लिए वरुण का साथ महत्वपूर्ण हैं तो वरुण के लिए भी इस समय राहुल का सहयोग जरूरी है।

कांग्रेस में हो सकती है वरुण की एंट्री

सियासी सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही वरुण गांधी की कांग्रेस में इंट्री हो सकती है। उन्हें पार्टी में सम्मानजनक पद देकर महत्व दिया जा सकता है। ऐसे में संभावना बन रही है कि लगभग साढ़े तीन दशक बाद नेहरु-गांधी परिवार में एका आ सकती है। रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल सकती है। आखिर इतने लंबे अर्से बाद एक दूसरे को फूटी आंख ना सुहाने वाले लोग कैसे एक होने जा रहे हैं, इसको समझना भी जरूरी है। बताया जाता है कि कांग्रेस की सियासत में दबदबा रखने वाले संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी केवल एक सांसद भर रहकर संतोष कर लेंगे, यह सोचना मूर्खता है। वरुण अपने पिता की तरह बदलाव में यकीन रखने वाले और कड़े बोल बोलने वाले नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं। वह राजनीति को केवल राजनीति के तरीके से नहीं बल्कि बदलाव के वाहक के तौर पर कार्य करने के हिमायती रहे हैं। किसानों की मदद कर वह इसके संकेत भी दे चुके हैं।
वरुण गांधी के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्हें सोचना पड़ रहा है कि क्या उनका भविष्य अब अमित शाह और नरेंद्र मोदी की हुकूमत वाली बीजेपी में सुरक्षित रह सकता है? क्या बीजेपी वरुण गांधी पर कोई बड़ा दांव से डरती है? क्या बीजेपी अब वरुण से किनारा करना चाहती है। ऐसे कई सवाल हैं, जो वरुण के साथ उनके समर्थकों को भी मोदी-शाह की बीजेपी पर बादशाहत साबित होने के बाद से परेशान कर रहे हैं। वरुण गांधी इस बात को बखूबी समझने लगे हैं कि उनके परिवार का विरोध करने तथा कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाली भाजपा में उनका राजनीतिक भविष्य बहुत चमकदार नहीं है। संभावित आशंकाओं और अनुमानों के आकलन के बाद ही अब वरुण परोक्ष-अपरोक्ष रूप से अपनी ही सरकार को लपेटे में लेने के मौके बनाते रहते हैं। अखबारों में कॉलम लिखकर भी मोदी सरकार को कटघरे में खड़े करने का मौका गंवाने से नहीं चूकते हैं।

सूत्र बताते हैं कि इसीलिए वरुण गांधी किसान-गरीबों की बात करने के साथ सामाजिक न्याय और सबकी सहभागिता की बात करने लगे हैं। उन्हें यह भी पता है कि भाजपा भले ही सामाजिक एवं सामरिक न्याय की बात करे, लेकिन इस नए युग वाली भाजपा में यह सब होने से रहा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रहते वरुण का भाजपा में पनप पाना भी संभव नहीं है। संघी पृष्ठभूमि ना होना भी इसमें बहुत बड़ा अड़चन है। कुल मिलाकर अब वरुण आकलन कर चुके हैं कि भाजपा में उनका भविष्य नहीं है। नए निजाम में पार्टी के चाणक्य अमित शाह वरुण गांधी को राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी का आदमी समझते हैं। जब बीजेपी की कमान राजनाथ सिंह के पास थी, तब तक वरुण गांधी की पार्टी में सम्मानजनक हैसियत थी, वह पार्टी के महासचिव रहने के साथ बंगाल और असम के प्रभारी भी थे, लेकिन अमित शाह के हाथ में कमान आते ही वह पैदल कर दिए गए। राज्यों का प्रभार भी छीन लिया गया। यह सब अचानक नहीं किया गया बल्कि वरुण से हो सकने वाली संभावित परेशानियों को देखते हुए किया गया।

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